पापा ने भी कभी हमसे बाबू शोना करके बात नही की, इसके विपरीत बहुत मार खाई है हमने – अमरजीत कुमार

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पापा ने भी कभी हमसे बाबू शोना करके बात नही की, इसके विपरीत बहुत मार खाई है हमने – अमरजीत कुमार

अमरजीत कुमार , भागलपुर

न्यूज डेस्क ( भागलपुर):- गांव-देहात में पले-बढ़े होते हैं वो अपने माँ-पिता को अपना प्यार दिखा नहीं पाते है, उनके सामने हिम्मत ही नही होती, आज के बच्चे “लव यू डैड “उम्म्म्म्म्मह” ये सब आसानी से बोल लेते हैं, पर हम सभी से ये सब नही हो पाता, इसे शर्म-झिझक कह लें या फिर हमे वैसा माहौल ही न मिला, ये कह लें. पापा ने भी कभी हमसे बाबू शोना करके बात नही की, इसके विपरीत बहुत मार खाई है, बहुत मारा है हमें. ऐसा कुछ नहीं था घर में जो उठाने लायक हो और उन्होंने उससे मुझे ना मारा हो. चप्पल, डंडा, बेल्ट, थप्पड़, मुक्के, जब जिस तरह समझ आया उस तरह दौड़ा दौड़ा कर धोया है मुझे, बस चाकू को छोड़कर. ऐसा नही है सिर्फ मैं ही मार खाया हूँ, मोस्टली बच्चे हमारे आस-पड़ोस के सबकी हालत यही थी. सब लतियाय जाते थे. पर आज लिख रहा हूँ, दुनियाँ को समझ रहा हूँ, दो रुपये कमा रहा हूँ, सब उसी का परिणाम है. कभी पढा नही तो मारा, याद नही किया टास्क तो मारा, रट कर टास्क याद किया तो और मारा, किसी को गलती से भी गाली दे दी तो दोगुना मारा, वीकली टेस्ट में 80% से कम लाया तो तिगुना मारा, पर कभी मुझे हारने न दिया, टॉप 3 से नीचे वर्ग में कभी आने ना दिया मुझे. चाहे कृष्ण का उपदेश हो या श्री राम की कथा, सब समझाया मुझे. घर मे ही सब पढ़ाया, सबकुछ सीखाया. बच्चे के कम नम्बर आ जाए तो आजकल के माँ पापा कुछ बोलते नही उल्टा यह कहते है कि कोई बात नही अगली बार और मेहनत करना सब ठीक है. बस इस डर से की कहीं बच्चे डिप्रेशन में ना चले जाएँ, पर हमलोग का अलग सीन था. नम्बर कम आया तो दे लात घूँसा, दे बेल्ट, डंडा और डिप्रेशन तो पापा का जूता देखकर दो कोस दूर से ही भाग जाया करता था. 5 साल घर से बाहर रहा, पर कभी कुछ माँगा नहीं. खुद ही ट्यूशन पढा कर अपना खर्च निकाला. इकलौता था, चाहता तो अपनी ज़िद से सबकुछ मनवा सकता था. पर उचित अनुचित का बोध तो माँ पापा ने किशोरावस्था में ही आत्मा तक में डाल दिया था. दूर रहकर बस एक ही चीज़ चाहिए होती है. कि दिन में एक बार “हाँ खाना खा लिया, अब सोने जा रहा हूँ” बस इतनी सी ही बात हो जाये. और पीछे से पापा की खांसने की आवाज सुन लें, बस इतना ही काफ़ी होता है क्योंकि उनसे बात करने की हिम्मत तो अब भी नही जुटा पाते.
बहुत बार गलती की है मैंने, हर्ट भी किया हूँ मम्मी पापा को. किसी का गुस्सा किसी पर, आज तक कभी माफी नही माँगा, जानता हूँ आवश्यकता नही, वो पहले ही माफ कर देते हैं हमेशा. लोग कहते हैं सिर्फ लड़कियाँ ही विदा होती है, ऐसी बात नही है लड़के भी विदा होते हैं. मैं भी विदा हुआ था, लड़कियों को कम से कम एक परिवार तो मिलता है, हम लड़कों को अकेले ही दर’ब’दर भटकना पड़ता हैं और पूरा जीवन भटकना पड़ता है. अनेक लड़के जो 15-16 की आयु में घर से निकल जाते हैं पढाई करने फिर पढाई पूरी करके किसी कम्पनी में कार्यरत हो जाते हैं. फिर वो दुनिया के रेस में खुद को धकेल देते हैं. और वो चाहकर भी फिर माँ पापा के साथ पूरे साल में 10 दिन भी नही बीता पाते ढंग से. जब 15 वर्ष की आयु में वो लड़के घर छोड़ते हैं तब उन लड़को को ये कहाँ मालूम होता है कि अब साल भर में बस 2-4 बार ही माँ पापा से छोटी छोटी मुलाकातें हो पाएंगी. लड़कियों की विदाई के बाद जब मन वो मायके आकर 2-4 महीने रह लेती हैं. पर हम लड़के ना 2-4 महीने गुजार सकते हैं और न ही हम लड़के विदाई पे रो सकते हैं, वो क्या है कि हमारी विदाई ऑफिसियल नही है न. जब एक बेटा अपने माँ पापा से कोसों दूर होता है और इस तेज़ रफ्तार वाली दुनियाँ के रेस में अपनी ज़िन्दगी को झोंक चुका होता है. तब उसे अपना बचपन याद आता है और वो सोचता है कि क्या कभी वो दिन लौटेंगे जब हम और हमारे माँ पापा साथ होंगे, आलू के पराठें उनके हाँथ से पिताजी की वही डाँट और मार खाने का डर, कुछ प्यार भरी बातें, 4 पराठें अपनी भूख के और एक जबरदस्ती उनकी ज़िद का ।।

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