जब आता है गर्भ में शिशु ,
तो हो प्रसन्न माँ जाती,
एक एक दिन करती है प्रतीक्षा,याद उसी की आती,
धीरे धीरे बीत रहे दिन,
शिशु भी बड़ा हो रहा है,
माँ के गर्भ में देखो माँ
को कैसा गुदगुदा रहा है,
होता है आभास जो माँ को,
दिन हो या फिर राती,
जब आता है गर्भ में शिशु
तो मां प्रसन्न हो जाती,।।
जब लगता है सात महीना,
तब धड़के माता का सीना,
घबराहट होती है उसको,
कैसे बीते सात महीना,
गर्भ में शिशु है खूब घूमता,
माँ उसको है सहलाती,
जब आता है गर्भ में शिशु
तो मां प्रसन्न हो जाती,,।।
अब आया है समय जो देखो
जन्म शिशु के लेने का,
थोड़ा सा डर लगता देखो,
जन्म उसी को देने का,
किलकारी जब गूंज उठी,
तो पहला दूध पिलाती,
जब आता है गर्भ में शिशु
तो माँ प्रसन्न हो जाती।।
गोविन्द