बकरीद की रूहानी रौशनी: कुर्बानी की मिसाल और इबादत का पैग़ाम

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बिहपुर — खानकाह-ए-मोहब्बतिया, बिहपुर के सज्जादानशीन हज़रत अली कौनैन खां फरीदी और नायब सज्जादानशीन हज़रत मौलाना अली शब्बर खां फरीदी ने बकरीद के मुबारक मौके पर इस पर्व के गहरे आध्यात्मिक मायने को साझा करते हुए कहा कि कुर्बानी सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि अल्लाह की राह में सब कुछ न्योछावर कर देने का सबक है।

इस साल बकरीद का त्योहार 7 जून को मनाया जाएगा। दुनियाभर के मुसलमान इस दिन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत को ज़िंदा रखने के लिए कुर्बानी पेश करते हैं।

फरीदी साहब ने बताया कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को पहले दो बार कुर्बानी का हुक्म दिया गया था, लेकिन तीसरी बार अल्लाह तआला ने उन्हें उनके सबसे अज़ीज़ बेटे, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी का इम्तिहान दिया।

जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मीना के मैदान में बेटे की कुर्बानी देने के लिए आंखों पर पट्टी बांधकर छुरी चलाई, तो अल्लाह की रहमत ने दस्तक दी — बेटे की गर्दन नहीं कटी, क्योंकि यह तो खुदा की आज़माइश थी। उसी पल जन्नत से फरिश्ता जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक दुम्बा (मेंढा) लेकर आए और अल्लाह के हुक्म से उसे इस्माईल की जगह लिटा दिया गया।

इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आंखों पर पट्टी बांधे ही उस दुम्बे की कुर्बानी दी, और इस तरह अल्लाह ने उनकी वफ़ादारी और तस्लीम को कुबूल फरमाया।

बकरीद हमें यह सिखाती है कि जब इंसान दिल से अपने रब की राह में सब कुछ कुर्बान करने का जज़्बा रखे, तो अल्लाह तआला भी रहमत के दरवाज़े खोल देता है।

इस मौके पर हज़रत फरीदी ने तमाम मुस्लिम समाज से अपील की कि कुर्बानी के साथ-साथ हम अपने दिलों को भी साफ करें, और गरीबों, जरूरतमंदों के साथ खुशियां बांटकर इस त्योहार को मक़सद के साथ मनाएं।

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