बिहपुर: खानका ए आलिया कादिरिया फरीदिया मोहब्बतिया, बिहपुर में सूफी परंपरा की रूहानी रोशनी से नहाया हुआ उर्स-ए-पाक का आयोजन बड़े अदब व एहतराम के साथ मनाया गया। हज़रत सैयदना अलैहदाद शाह कादरी फरीदी रहमतुल्लाह अलैहे की याद में आयोजित इस मौके पर आध्यात्मिक माहौल में डूबी खानकाही कव्वाली की महफिल देर रात तक गूंजती रही।
कव्वाली की शाम, इश्क़-ए-हकीकी के नाम:
समस्तीपुर रोसड़ा से आए मशहूर कव्वाल मोहम्मद अकरम फरीदी और मोहम्मद रुसतम फरीदी ने जब अपने सूफियाना कलामों से महफिल की शुरुआत की, तो जैसे फिजा में इश्क़, मोहब्बत और रूहानियत घुल गई। “भर दे झोली मेरी या मोहम्मद” जैसे कलाम पर हज़ारों दिल धड़क उठे, तो “दमादम मस्त कलंदर” पर जायरीन खुद-ब-खुद झूमने लगे।
चादरपोशी से फातिहा तक:
कव्वाली के बाद मजार शरीफ पर चादरपोशी, गुलपोशी, फूलपोशी और नियाज़-ए-फातिहा अदा की गई। हर कोने से आती दुआओं की सरगोशी ने माहौल को और भी पाकीज़ा बना दिया। इस मौके पर जायरीनों के बीच शिरनी बांटी गई, जिसे मोहब्बत और बरकत की निशानी माना गया।
रूहानी पेशवाई और अकीदतमंदों का हुजूम:
इस पूरे आयोजन की सदारत सज्जादानशीन हज़रत अली कौनैन खां फरीदी ने की, वहीं उनके नायब हज़रत मौलाना अली शब्बर खां फरीदी की कयादत में कव्वाली की रात चलती रही। रूहानी फिजाओं में डूबे इस आयोजन में हज़रत मौलाना अबूसालेह फरीदी, हाफिज शकील, कर्रार खां, रहबर खां, हाफिज क़ाज़ी तारीक अनवर, समाजसेवी इरफान आलम, गुलाम पंजतन, जफर खान, हस्सान खां, बुशमस आज़म और कमरुज़्मा फरीदी सहित सैकड़ों मुरीदीन व अकीदतमंद शामिल रहे।
बिहपुर की यह सूफियाना रात सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि रूह से रूह तक पहुंचने वाली मोहब्बत की एक कड़ी थी – जो बताती है कि खानकाही तहज़ीब आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है, और उर्स-ए-पाक के बहाने फिर एक बार दिलों को जोड़ने का पैगाम दे गई।