सरकारी जमीन पर कब्जा, मिट्टी भराई से बना तालाब जैसी सड़क — जयपुर चुहर पूरब पंचायत के ग्रामीण जलजमाव से बेहाल, गड्ढा उड़ाही और नाली निर्माण की कर रहे मांग

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भागलपुर (नारायणपुर प्रखंड)। जयपुर चुहर पूरब पंचायत के वार्ड संख्या 9 और 10 में जलनिकासी की घोर लापरवाही अब लोगों के लिए सिरदर्द बन चुकी है। बारिश आते ही सड़कें तालाब बन जाती हैं। तीन से चार फीट तक पानी भर जाता है और करीब दो हजार की आबादी का जनजीवन ठहर जाता है। गांव के लोग न घर से बाहर निकल सकते हैं, न ही बच्चे स्कूल जा पाते हैं।

गांववालों का आरोप है कि समस्या पुरानी है लेकिन समाधान के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिला है। दो साल पहले अंचलाधिकारी से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक आवेदन देकर गुहार लगाई गई थी, मगर ज़मीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है।

अवैध मिट्टी भराई से बंद हुआ पानी का रास्ता

स्थानीयों के मुताबिक, पहले बलाहा गांव में पानी सड़क के दक्षिणी छोर पर स्थित एक सरकारी गड्ढे के जरिए निकल जाता था। पर अब वह गड्ढा भी ‘निजी कब्जे’ की भेंट चढ़ गया है। आरोप है कि गांव के ही कुछ लोगों ने मिट्टी डालकर सरकारी ज़मीन पर कब्जा कर लिया है।

“सुनते हैं सब, करते कुछ नहीं” — ग्रामीणों की पीड़ा

पिंटू सिंह, गांव के निवासी, ने कहा, “दो साल से हम लगातार अधिकारियों को आवेदन दे रहे हैं। सीईओ, मुखिया, विधायक सबको जानकारी दी है। लेकिन हर बार सिर्फ ‘देखेंगे’ और ‘करेंगे’ की बात होती है। कोई नहीं आता देखने कि बच्चे पानी में कैसे फिसलते हैं, बीमार होते हैं।”

वार्ड प्रतिनिधि अजय कुमार ठाकुर ने बताया, “पानी निकासी की जो परंपरागत व्यवस्था थी, वह अतिक्रमण से ठप हो गई है। रामतार सिंह और सतीश सिंह ने गड्ढे में मिट्टी भर दी है। प्रशासन चाहे तो पुराने रास्ते को फिर से बहाल कर सकता है।”

“सिर्फ मुझे क्यों टारगेट कर रहे?” — आरोपित रामतार सिंह की सफाई

रामतार सिंह ने भी पलटवार करते हुए कहा, “गांव में विकास हो तब न कोई कुछ बोले। जब जनप्रतिनिधि खुद योजनाओं का पैसा डकारते हैं, तो सारी उंगली हम पर क्यों? अगर अतिक्रमण की बात है, तो सब पर कार्रवाई हो। नाली बनवाइए, गांव की हालत सुधरेगी।”

गांव की मांग: गड्ढा उड़ाही और पक्की नाली हो निर्माण

ग्रामीणों की सीधी मांग है — सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाया जाए, पुराने गड्ढे की उड़ाही करवाई जाए और सड़क के किनारे पक्की नाली बनाई जाए, ताकि हर बरसात में उन्हें जलजमाव की त्रासदी न झेलनी पड़े।

अब सवाल यह है — क्या प्रशासन जागेगा या फिर ग्रामीणों की उम्मीदें यूं ही पानी में बहती रहेंगी?

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