विशेष संवाददाता | काजल कुमारी, पाटलिपुत्रा सेंट्रल स्कूल, बिहपुर
अक्सर यह कहा जाता है कि जीवन के सबसे कठिन कार्य शादी करना, नौकरी पाना, घर बनवाना या करियर का चुनाव करना हैं। लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो शिक्षण ऐसा पेशा है, जो धैर्य, संयम और जिम्मेदारी की सबसे बड़ी परीक्षा लेता है।
एक या दो बच्चों को संभालने में जहां माता-पिता परेशान हो जाते हैं, वहीं एक शिक्षक रोजाना कक्षा में 25 से 30 विद्यार्थियों को एक साथ संभालता है। यही नहीं, एक शिक्षक प्रतिदिन छह पीरियड में करीब 200 विद्यार्थियों से सीधा संवाद करता है। यह कार्य न तो आसान है और न ही सामान्य।
कक्षा में हर विद्यार्थी का स्वभाव अलग होता है। कोई अत्यधिक चंचल होता है, कोई जिद्दी, तो कोई शांत और संकोची। इन सभी को एक साथ पढ़ाना, अनुशासन में रखना और उनकी शैक्षणिक प्रगति सुनिश्चित करना शिक्षक की जिम्मेदारी होती है।
शिक्षक का दायित्व केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं है। वह विद्यार्थियों को संस्कार देता है, अनुशासन सिखाता है और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में मार्गदर्शन करता है। इसके लिए शिक्षक को प्रतिदिन मानसिक दबाव, धैर्य और आत्मसंयम के साथ काम करना पड़ता है।
घर में व्यक्ति अपने गुस्से को व्यक्त कर सकता है, लेकिन विद्यालय में शिक्षक को हर परिस्थिति में संयम बनाए रखना होता है। तमाम चुनौतियों के बावजूद शिक्षक अपने कर्तव्य का निर्वहन पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षण केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि समाज निर्माण की बुनियाद है। यही कारण है कि शिक्षक को गुरु, अध्यापक और आचार्य के रूप में सम्मान दिया जाता है।
