गांव से शहर तक हर आंगन में गूंजा भाई-बहन का स्नेह, तिलक ने बढ़ाई खुशियों की रौनक
श्रवण आकाश, खगड़िया दीपावली के समापन के साथ ही गुरुवार को खगड़िया जिले के गांव और शहरों में भाईदूज का पर्व बड़े उत्साह और भावनात्मक स्नेह के साथ मनाया गया। सुबह से ही बहनों के घरों में पूजा और सजावट का खास माहौल देखने लायक रहा। बहनों ने तिलक की थाली में रोली, अक्षत, दीपक और मिठाई सजाकर भाइयों का तिलक किया और उनकी लंबी उम्र तथा खुशहाली की कामना की।

खगड़िया जिला के गोगरी, परबत्ता, चौथम, बेलदौर, मानसी समेत आसपास के ग्रामीण इलाकों में भाईदूज की खास चमक रही। बहनों ने अपने भाइयों को तिलक लगाने के बाद मिठाई खिलाई, जबकि भाइयों ने बदले में रक्षा और सम्मान का वचन दिया। कई जगह वर्षों बाद लौटे भाइयों के आगमन से माहौल भावनात्मक हो गया। वही गांवों में परंपरागत लोकगीतों की गूंज पूरे दिन सुनाई देती रही। “भैया मोरा दूर देशवा, आवत रहिहऽ दूज के दिनवा…” जैसे गीतों ने बहनों की आँखों की चमक और भाइयों की मुस्कान को और अधिक जीवंत बना दिया। बाजारों में भी भाईदूज की रौनक दिखी। मिठाई की दुकानों पर रसगुल्ले, पेड़ा और सोनपापड़ी की मिठास ने हर किसी के चेहरे पर मुस्कान ला दी। साथ ही, उपहार और सजावट के सामान की खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ बाजारों में जुटी रही।

परबत्ता और गोगरी के कई परिवारों ने भाईदूज को सामाजिक संदेश के रूप में मनाया। बहनों ने भाइयों से नारी सम्मान, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के वचन दिलाए। स्थानीय स्कूलों में बच्चों ने भाई-बहन के प्रेम पर निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लिया। छोटे बच्चों ने रंगों और चित्रों के माध्यम से रिश्तों की सुंदरता को दर्शाया। कई परिवारों ने मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई और पौधरोपण जैसे सामाजिक कार्यों की शुरुआत भी की।

स्थानीय पंडित बुच्चु झा ने बताया कि भाईदूज का धार्मिक महत्व यमराज और यमुना से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर जाकर भोजन किया था, इसलिए इसे यमद्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहन द्वारा भाई का तिलक करने से अकाल मृत्यु का भय टल जाता है और भाई का जीवन लंबा व सुखमय होता है। शाम होते-होते गांवों में भाई-बहन का मिलन भोज और पारिवारिक बैठकों के साथ संपन्न हुआ। छोटे भाइयों ने अपनी बड़ी बहनों को उपहार और कपड़े भेंट किए, जबकि बहनों ने भाई को आरती कर आशीर्वाद दिया — “भैया, तू सदा खुश रह, यही दूज की दुआ है।” इस अवसर पर कई परिवारों ने एक-दूसरे को मिठाई और प्रसाद बाँटकर रिश्तों में अपनापन और भाईचारे की भावना को और मजबूत किया। सोशल मीडिया पर भी भाईदूज की खुशियों की गूंज रही। लोगों ने अपने भाइयों-बहनों के साथ तस्वीरें साझा कीं और भावनात्मक संदेश लिखे — “खून का रिश्ता नहीं, दिल का नाता है भाईदूज का त्योहार।” ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर #BhaiDooj2025 ट्रेंड करता रहा, जिससे पर्व की डिजिटल पहचान भी मजबूत हुई।
खगड़िया की मिट्टी में आज फिर रिश्तों की खुशबू घुल गई। बहनों के तिलक से सजा भाइयों का माथा और भाइयों के वचन से महक उठा हर आंगन। भाईदूज ने एक बार फिर यह साबित किया कि परिवार ही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत है। गांव-शहर के घरों में बिखरी मिठास, प्यार और अपनापन इस पर्व को एक अविस्मरणीय उत्सव बनाते हैं। दिनभर गूंजते पारंपरिक गीत और स्थानीय संगीत ने भाईदूज को एक जीवंत सांस्कृतिक कार्यक्रम का रूप दिया। लोग नृत्य और गीत के माध्यम से अपने रिश्तों की मिठास को महसूस कर रहे थे। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भाईदूज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि रिश्तों और संस्कृति की जीवंत धरोहर है। छोटे-छोटे गांवों से लेकर शहर के मोहल्लों तक, हर घर में तिलक, मिठाई और उपहारों की रौनक ने भाईदूज को एक यादगार उत्सव बना दिया। बहन की मुस्कान और भाई की खुशी ने पूरे जिले में प्रेम, अपनापन और भाईचारे की भावना को नई दिशा दी।

