नारायणपुर के नवटोलिया की दक्षिणेश्वरी काली मंदिर (KALIMANDIR) में दैनिक व मिथिला विधि से होती है माँ काली की पूजा ।। Inquilabindia

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  • नारायणपुर के नवटोलिया की दक्षिणेश्वरी काली मंदिर (KALIMANDIR) में दैनिक व मिथिला विधि से होती है माँ काली की पूजा ।। Inquilabindia
  • सौ फीट ऊंची, बहती गंगा के तट पर अवस्थित, सैकड़ों वर्ष पुराना है मंदिर का है इतिहास
  • प्रत्येक वर्ष काली पूजनोत्सव पर लगता है भव्य मेला, जुटते है लाखों श्रद्धालु
  • हर वर्ष गंगा-काली दोनों बहनों का होता है समागम, बना है आकर्षण का केंद्र

नवगछिया। अनुमंडल क्षेत्र के नारायणपुर प्रखंड अंतर्गत नवटोलिया गाँव स्थित प्रसिद्ध दक्षिणेश्वरी काली मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। कलकल बहती गंगा के तट पर अवस्थित यह मंदिर इलाके में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष नदी में पानी आने के बाद गंगा का पानी बांध से ऊपर चढ़कर और माता काली की पिंडी तक जाकर अगले दिन धीरे-धीरे वापस लौट जाती है। मंदिर के पुजारी विद्यानंद झा, अरुण झा ने बताया कि यहां माँ काली की पूजा दैनिक व मिथिला विधि से होती है। काली पूजनोत्सव पर मंदिर के प्रधान पुजारी विद्यानंद झा और अमरपुर के अरुण झा द्वारा पूरे विधि-विधान से माँ काली की पूजा किया जाता है। माँ काली के सेवायत के रूप में स्व रामेश्वर झा, धनंजय झा, संजय झा महात्मा जी आदि लगे रहते हैं। मंदिर कमिटी के प्रभारी अध्यक्ष सह समाजसेवी सुरेश प्रसाद, कोषाध्यक्ष बमबम यादव, उपसचिव ब्रजेश यादव, पंकज यादव, कमिटी के निगरानी सदस्य सन साइन स्कूल के प्राचार्य मनोज यादव, समाजसेवी रंधीर कुमार मंडल, एडवोकेट श्यामानंद गुप्ता, मुकेश मंडल, अशोक ऋषिदेव, तपेश कुमार ठाकुर, सुदर्शन यादव आदि ने कहा कि इस काली मंदिर में माँ अपने सह भागीनों के साथ निरंतर निवास करती है। गाँव के ही मंदिर के जानकार वयोवृद्ध ने बताया कि सैकड़ो वर्ष पूर्व नवटोलिया के सौदागर मंडल, पूर्व मुखिया अनिल पटेल के पूर्वज प्रेम खलीफा जो अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध अपराध क्षेत्र में कदम रखा था। अंग्रेजों ने प्रेम खलीफा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

इस बीच जेल में उन्हें स्वप्न आया की साह टोला गनौल के मंदिर से मिट्टी लाकर गाँव मे काली माँ की पूजा अर्चना के लिए एक मंदिर स्थापित करें। बताया की जेल से निकलने के बाद प्रेम खलीफा गनौल के काली मंदिर से मिट्टी गाँव मे लाकर स्थापित किया था। उस वक्त फूंस का एक छोटा मंदिर सड़क के बीचोबीच अवस्थित था। जहां ग्रामीण श्रद्धालु पूजा पाठ करने लगे। बताया कि जहां यह मंदिर स्थित है, वहां पूर्व में भी मंदिर के सामने ही गंगा नदी का कलकल पानी बहती थी जो आज आकर्षण का केंद्र बना है। हर वर्ष काली पूजा के अवसर पर मंदिर में रात 10 बजे चक्षुदान होता है जो यहाँ किसी काली मंदिरों में नही किया जाता है। इस बार 24 अक्टूबर को काली पूजा औऱ दीपावली दोनों है। 24 अक्टूबर को शाम 6 बजे के करीब अमावस्या प्रवेश करेगा। 26 को प्रतिमा का विसर्जन मंदिर के सामने ही गंगा में किया जाएगा। काली पूजा के दिन प्रतिमा तैयार कर रंगाई के बाद नए वस्त्र, श्रृंगार आदि से सजाकर पिंडी पर स्थापित करते हैं। रंगाई के दौरान व प्रतिमा को अंतिम रूप देने के क्रम में कारीगर उपवास पर रहते हैं। पिंडी पर स्थापित करने के पूर्व कारीगर एक नाई के साथ पवित्र गंगा में स्नान कर नए वस्त्र धारण करते है। इस दौरान पिंडी को चारों तरफ से पर्दे से ढक दिया जाता है। पर्दे के भीतर मात्र कारीगर रहते है। कारीगर एक बर्तन में काला टिम देने के लिए दर्पण में देखकर माँ काली का नेत्र बनाता है। जिसे चक्षुदान कहते हैं। इस मंदिर में माँ काली का नेत्र बनाते वक्त कोई भी आंख मिलाकर डिंब नही बना सकता है। वही नेत्र तैयार होने के वक्त एकवर्ना काला पाठा प्रतिमा के सामने उठाकर रखते हैं। इसलिए की माँ का नेत्र बनते ही सामने काला पाठा जीव पर दृष्टि पड़े। यह चक्षुदान हुआ। वही 11 बजे मंदिर की अच्छे से धुलाई के बाद सुबह 4 बजे नवटोलिया ग्रामवासियों के नाम से पहला पाठा बलि दिया जाता है। जिसके बाद इलाके भर के हजारों पाठा की बलि शुरू हो जाती है। इस दिन ग्रामीणों समेत इलाके भर के भक्तगण व कीर्तन मंडली मंदिर प्रांगण में बैठकर माँ का भजन गाते हैं। यहां कालीपूजा में बिहार ही नही बल्कि देश विदेश के लाखों श्रद्धालु आकर माँ से मन्नतें मांगते है और मन्नत पूरी होने पर बलि चढ़ाते है। काली पूजा के अवसर पर लगने वाले भव्य मेले के लिए मंदिर के तीन ओर पर्याप्त जगह में तरह-तरह की दुकानें सजाई जा रही है। जिसमे ब्रेक डांस, टावर झूला, नौकाझूला, घोड़ाचक्र, दर्जनों मिठाई व चाट की दुकानें, श्रृंगारिक प्रतिष्ठान समेत फल फूल की दुकानें लगाई गई है। हर ओर माता रानी के जयकारों से गुंजायमान है। भवानीपुर ओपी की पुलिस लगातार मेला परिसर पर नजर बनाए हुए हैं। तत्काल दो चौकिदार की प्रतिनयुक्ति मंदिर में कर दिया गया है।

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