हाल ही में एक वायरल वीडियो ने सोशल मीडिया पर खलबली मचा दी, जिसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रसिद्ध कथावाचक अनिरुद्धाचार्य से एक दिलचस्प सवाल पूछते नजर आते हैं—“ भगवान श्रीकृष्ण का पहला नाम क्या था ? ”
अनिरुद्धाचार्य ने सहजता से उत्तर दिया—“कन्हैया”, पर अखिलेश इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और मुस्कुराते हुए बोले—“इस उत्तर के बाद अब आपके और हमारे रास्ते अलग हो गए।”
इस छोटी-सी बातचीत ने धार्मिक-दार्शनिक हलकों में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया—आखिर श्रीकृष्ण का “पहला नाम” क्या था?
📜 शास्त्रों की जुबानी: पहला नाम क्या था?
श्रीमद्भागवत पुराण (स्कंध 10, अध्याय 3, श्लोक 31) में स्पष्ट उल्लेख है कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब पिता वसुदेव ने उनका नाम ‘कृष्ण’ रखा। यह नाम उनके श्यामवर्ण और दैवीय प्रकृति को दर्शाता है।
🔹 “त्वं एव कृष्णो भव भूतसुहृद् जनार्दन:”
(तू कृष्ण नाम से जाना जाएगा, जो सबका सुहृद है)
👉 यानी शास्त्रीय दृष्टिकोण से “कृष्ण” ही उनका पहला नाम था।
👪 गोकुल में अपनापन: नामों की बौछार
जब वसुदेव ने बालकृष्ण को यमुना पार कर गोकुल पहुंचाया और उन्हें नंदबाबा व यशोदा को सौंपा, तब श्रीकृष्ण को नए सिरे से पहचान मिली:
- यशोदानंदन – यशोदा का पुत्र
- नंदलाला – नंदबाबा का प्यारा
- कन्हैया / कान्हा – ब्रज की ममता भरी पुकार
- गोपाला – ग्वालों का रक्षक
👉 ये नाम प्रेम और लीलाओं की पहचान बने, लेकिन इनमें कोई “औपचारिक नामकरण” नहीं था।
📚 गर्ग संहिता और नामकरण संस्कार
गर्गाचार्य द्वारा श्रीकृष्ण का नामकरण किया गया। उन्होंने कहा:
🔹 “कृष्णं इति नाम…”
(उनका नाम कृष्ण रखा गया)
इससे पुष्टि होती है कि शास्त्रसम्मत नाम “कृष्ण” ही था।
🧬 “वासुदेव” नाम का अर्थ और उपयोग
कई लोग भ्रमित होते हैं कि उनका पहला नाम “वासुदेव” था। परंतु ये उपनाम (patronymic) है—वसुदेव का पुत्र।
👉 जैसे रामचंद्र को दाशरथी कहा जाता है (दशरथ के पुत्र), वैसे ही कृष्ण वासुदेव कहलाए।
🎭 लोककथाओं का रंग:
ब्रज की गलियों, लोकगीतों और कहानियों में श्रीकृष्ण को कई नामों से पुकारा गया:
- लालाजी
- माखनचोर
- नटखट
- मोहन
परंतु ये सभी नाम प्रेम और लोकभावना से जन्मे, न कि जन्म के समय वसुदेव द्वारा दिए गए।
🧩 तो निष्कर्ष क्या है ?
📌 भगवान श्रीकृष्ण का पहला नाम “कृष्ण” था, जो उन्हें जन्म के समय वसुदेव ने दिया था।
📌 “वासुदेव” उपनाम है, और “कन्हैया”, “नंदलाला”, “गोपाला” जैसे नाम प्रेम और सामाजिक पहचान का हिस्सा हैं।
🗣️ और अखिलेश का सवाल?
अखिलेश यादव का सवाल था दिलचस्प और सोचने योग्य। अनिरुद्धाचार्य ने भावना से उत्तर दिया, पर शास्त्रों के आधार पर सटीक उत्तर “कृष्ण” ही है, न कि “कन्हैया”।
इस प्रकरण ने यह भी दिखाया कि हमारे पौराणिक चरित्रों पर चर्चा आज भी जनचेतना का हिस्सा है—और यह संवाद जारी रहना चाहिए, शास्त्रों की रोशनी और लोकजीवन की भावनाओं के साथ।
आपका क्या मानना है? “कन्हैया” कहने में जो अपनापन है, क्या वो “कृष्ण” नाम से ज्यादा गूंजता नहीं ?