मुजफ्फरपुर पुलिस प्रशासन की गंभीर चूक एक बार फिर सुर्खियों में है। साहेबगंज थाना क्षेत्र से जुड़े 28 साल पुराने डकैती और आर्म्स एक्ट के मामले में जारी कुर्की आदेश पिछले 18 वर्षों तक थाने में ही दबा रह गया। 2007 में पारित यह आदेश न तो लागू हुआ और न ही इसकी समीक्षा की गई। अब यह मामला पटना हाईकोर्ट पहुंचने के बाद पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है।
72 वर्षीय उमाशंकर सिंह ने लगाई हाईकोर्ट में याचिका
पूर्वी चंपारण के कल्याणपुर थाना क्षेत्र निवासी 72 वर्षीय उमाशंकर सिंह को पुलिस वर्ष 1997 से फरार दिखा रही थी। हाल ही में पुराने मामलों के निष्पादन अभियान के दौरान जब पुलिस ने कार्रवाई शुरू की, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि उन्हें झूठा फंसाया गया है और बिना आधार के वर्षों तक फरार घोषित रखा गया।
हाईकोर्ट का सख्त रुख—थानेदार और IO को रिकॉर्ड सहित पेश होने का आदेश
हाईकोर्ट ने इस गंभीर लापरवाही को संज्ञान में लेते हुए साहेबगंज थाना के वर्तमान थानेदार और मामले के जांच अधिकारी को 12 दिसंबर को पूरे केस रिकॉर्ड के साथ तलब किया है। कोर्ट ने आदेश की प्रति मुजफ्फरपुर एसएसपी को भी भेजी है और अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने को कहा है।
कोर्ट ने साफ निर्देश दिया है कि निम्न बिंदुओं पर स्पष्ट जवाब दिया जाए—
- कुर्की आदेश 18 साल तक क्यों दबा रहा?
- वारंट व इश्तेहार लागू क्यों नहीं किए गए?
- केस इतने लंबे समय तक निष्क्रिय क्यों पड़ा रहा?
कैसे शुरू हुआ मामला: 1997 की डकैती योजना
9 अगस्त 1997 को चौकीदार की सूचना पर पुलिस ने दोस्तपुर के नयाटोला में छापेमारी की थी। पुलिस ने मौके से रामबाबू सिंह उर्फ विजय सिंह को लोडेड राइफल के साथ गिरफ्तार किया, जबकि उसके साथी फरार हो गए। पूछताछ में उमाशंकर सिंह का नाम सामने आने के बाद पुलिस ने उन्हें भी मामले में नामजद कर दिया।
वारंट, इश्तेहार और 2007 की कुर्की—फिर 18 साल का सन्नाटा
- गिरफ्तारी न होने पर पहले वारंट जारी हुआ
- फिर इश्तेहार जारी किया गया
- और 2007 में कोर्ट ने कुर्की का आदेश पारित किया
लेकिन इसके बाद कार्रवाई पूरी तरह ठप हो गई। आदेश फाइलों में ही बंद रहा और लगभग दो दशक तक किसी स्तर पर पहल नहीं हुई।
पुलिस कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल
इतने पुराने मामले में कार्रवाई न होने और आदेश को थाने में दबाकर रखने को लेकर प्रशासन की जवाबदेही तय होना तय माना जा रहा है। यह मामला पुलिस सिस्टम की लापरवाही, निगरानी की कमी और जवाबदेही तंत्र की कमजोरियों को फिर उजागर करता है।
अब निगाहें 12 दिसंबर पर टिकी हैं, जब हाईकोर्ट में थानेदार और IO को इस 18 वर्षीय चूक का कारण बताना होगा।
