मैं जब भी यह शब्द सुनती हूं, “ग्रामीण महिला” तो मेरे दिमाग में बार-बार एक ही छवि उभरने लगता है। वैसे तो ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का वर्णन करना इतना आसान नहीं है, परंतु जब से मुझे याद है, मैंने अपनी मां का जो स्वरूप देखा है उसे शब्दों में पिरोने का मेरा एक छोटा सा प्रयास।
मैं अपनी मां को बचपन से ही देखती आ रही हूं वह प्रत्येक दिन सुबह 3:00 बजे उठ जाती है, उठते ही अपने नित्य क्रिया में लग जाती है।
हरेक दिन वह सुबह 4:00 बजे स्नान ध्यान करके ईश्वर की पूजा -अर्चना में लग जाती है,ईश्वर भक्ति में उसे बहुत विश्वास है ।सुबह का खाना जल्दी तैयार करना ,दादी मां की देखरेख करना, सभी को समय पर भोजन देना और साथ -साथ में सिलाई भी करती है। चार भाई बहन थे हम और साथ में मेरे चाचा- चाची के बच्चे भी , सभी को अपना समझती थी मेरी मां और आज भी समझ रही है।
वह जब भी सुबह उठती तो मुझे भी जल्दी उठा देती थी और घर के कामों के साथ-साथ मुझे पढ़ाया भी करती थी , साथ साथ में मुझे रामायण, महाभारत के किस्से -कहानी भी सुनाती थी। कभी-कभी तो मेरी दादी ताने कसते हुए कहती थी -बेटी को पढ़ाकर क्या बना लोगी आखिर ब्याह कर दूसरे घर ही जाना है, फिर भी मेरी मां ने कभी किसी को जवाब नहीं दिया।
आज तक उसे किसी से कभी झगड़ा -लड़ाई नहीं हुआ।एक ग्रामीण महिला होने के बावजूद आप जब उससे मिलेंगे तो आपको लगेगा नहीं, क्योंकि मेरी मां शिक्षित भी है साथ - साथ में वेद पुराणों का ज्ञान भी बहुत है उसके पास।
आप जिस रूप में उसे मिलेंगे आपको वैसे ही मिलेगी वह, एक शिक्षित व्यक्ति के लिए वह शिक्षित महिला बन जाती है, एक बुजुर्ग के लिए बुजुर्ग बन जाती है, और हम भाई बहनों के लिए दोस्त बन जाती है, उसे किस जगह पर क्या कहना है क्या बोलना है बखूबी आता है।
परंतु कभी भी वह शहर की तरफ नहीं भागी.. अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ सबकी देख-रेख करते हुए अपने जीवन को पूर्ण रूप से अपने परिवार को ही समर्पित कर दी।
मुझे हमेशा समझाती रहती है एक शिक्षित और सशक्त महिला बनो, अपने परिवार को लेकर चलो कभी किसी के बारे में गलत मत बोलो, वह कहती है किसी के बारे में गलत बोलना भी गलत है। मुझ में जितनी भी कला है वह मेरी मां की वजह से ही है, सुविधा ना होने के बावजूद उसके अंदर जितने भी कला थी वह मुझ में समाहित कर दी। नृत्य करना, चित्र बनाना, गीत- संगीत या फिर कह लीजिए थोड़ी बहुत लिखना यह सब गुण मेरे मां से ही मुझमें आया है।
मुझे हमेशा लगता है कि वाकई में दुनिया में ईश्वर के रूप में मैंने अपने मां को देखा है।
मैं अपनी मां की सबसे बड़ी बेटी हूं, इसलिए वह मेरी दोस्त भी है, वह मेरी मां भी है और मेरी जीवन की एक अच्छी साथी भी है जिसके वजह से हम दोनों ने अपना हर सुख दु:ख को साझा किया करती हूं बेझिझक। मैं जब भी मुश्किलों में रहती हूं मुझे जब-जब लगता है कि कोई रास्ता नहीं है, तब मुझे वह मेरे मार्गदर्शक बन कर सही रास्ते पर ले जाती है।
मेरी मां का जीवन भी इतना सरल नहीं था परंतु उसने अपने कर्मों से अपने जीवन को सरल बनाया है, कम उम्र में शादी होना, ऊपर से तीन बेटियों की मां होना उसके लिए आसान नहीं था ऊपर से मेरी दादी भी थोड़ी सी कड़क स्वभाव की थी ।
आप समझ सकते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में जो भी महिलाएं रह रही है उसके लिए दिन के 12 घंटे के साथ-साथ रात के 12 घंटे भी कम पड़ जाते हैं, क्योंकि मैंने भी अपनी मां को 12:00 बजे रात तक घर के कामों को निपटाते हुए देखा है, साथ – साथ में अगर घर की कोई सदस्य देर से आता है ,तो उसका इंतजार करना, अगर कोई बुजुर्ग बीमार हो तो उसकी रात में जागकर कर देख -रेख करना,यह सब कुछ मैंने अपनी मां को करते हुए देखा है। फिर मैं कैसे कहूं कि महिला सशक्त नहीं है, वह पूर्ण रूप से हर कार्य को करने में सक्षम भी है और सशक्त भी हैं।
अक्सर ही मुझे शहरी क्षेत्र के लोगों से सुनने को मिल जाता है ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए “गवार कहीं की”जो मेरे हृदय में शूल की तरह चुभने लगती है।
मुझे तो लगता है शहरी क्षेत्र के महिलाओं से ज्यादा सशक्त हमारी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं होती हैं जिसे घर के कामों के साथ साथ खेती-बाड़ी, गौ माता की सेवा, बच्चों की देखरेख करने के साथ-साथ परिवार को भी एक धागे में बांधकर रखना उसे बखूबी आता है।
पूजा भूषण झा, वैशाली ,बिहार।