आहट. ———————————-
यादें महज यादें नहीं,
चिनगारियाँ हैं!
तुम तिल्ली की बात करते हो,
मैंने बारूद की ढेर में दबी,
अपनी पहचान देखी है!!
तुम सुलगने-सुलगाने की बात करते हो!
मैंने श्मशानघाट की लपटों में,
जलते जिंदा लाशों की गंध में,
युद्धोन्मत,
मानवता की ललकार सुनी है!!
मत कहो!
हमें दफन कर दी तुमने,
ये सब हमारे शहीदी पथ पर, तूफानी आगमन की हैं!!
मौलिक स्वरचित रचना.
@ अजय कुमार झा.
मुरादपुर, सहरसा, बिहार.