बिहपुर | बहुजन चेतना केंद्र, बिहपुर में शनिवार सुबह ‘बदलो बिहार – बनाओ नई सरकार’ अभियान के तहत आयोजित जनसभा ऐतिहासिक बन गई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परपोते और सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी ने इस जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि “आज भी भाजपा और आरएसएस गांधी की परछाईं से डरते हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि जब भाजपा को सत्ता से बाहर होने का डर होता है, तो वह चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्थाओं का दुरुपयोग कर वोटरों को सूची से बाहर कराने का षड्यंत्र करती है।

तुषार गांधी ने बिहारवासियों से अपील की कि “हर गांव में ग्राम सभा के माध्यम से वोटर लिस्ट को पारित किया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि हम इस देश के नागरिक हैं और हमारी जगह वोटर लिस्ट में है।”

इस अवसर पर ‘आजादी के गुमनाम नायक’ पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया, जिसे लेखक गौतम कुमार प्रीतम ने लिखा है। इस कार्यक्रम में पूर्व विधायक और किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुनीलम, हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. मनोज कुमार, अंग्रेजी पत्रिका ‘जनता’ के को-संपादक गुड्डी, सामाजिक कार्यकर्ता उदय, राष्ट्र सेवक दल के रवीन्द्र सिंह, जिला परिषद सदस्य मोईन राईन समेत कई गणमान्य उपस्थित थे।

डॉ. सुनीलम ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, “बिहपुर के युवा नेता गौतम प्रीतम जैसे लोग ही भविष्य के नेतृत्वकर्ता बनेंगे। चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की निष्पक्षता आज सवालों के घेरे में है। बिहार पहली बार चुनाव आयोग के खिलाफ सड़कों पर उतरा है, यह लोकतंत्र के लिए चेतावनी है।”
सभा में आए सभी अतिथियों को खादी वस्त्र और स्मृति-चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मोईन राईन ने की, संचालन रवीन्द्र सिंह और गौतम कुमार प्रीतम ने किया, वहीं धन्यवाद ज्ञापन अखिलेश रमन ने प्रस्तुत किया।
सभा को महाराष्ट्र के शेख अल्लाउद्दीन, कोसी नवनिर्माण मंच के महेंद्र यादव, यूपी के अरविंद मुर्ति, विनोद सिंह निषाद, नसीब रविदास, राजद जिलाध्यक्ष अलखनिरंजन पासवान ने भी संबोधित किया।
सभा स्थल पर मौजूद हजारों लोगों की भीड़ ने तुषार गांधी और शहीद परिवारों को मिला सम्मान दिल से सराहा। प्रमुख उपस्थिति में मुखिया मो. सलाहुद्दीन, भाकपा माले के बिंदेश्वरी मंडल, निरंजन चौधरी, गौरीशंकर राय, राजेश पंडित, विजय पंडित, निर्भय, अनुपम आशीष, सुनीता देवी, बिट्टू कुमारी, रूची, अंजली, चंदा, दिव्या भारती सहित बड़ी संख्या में स्थानीय लोग शामिल रहे।
यह कार्यक्रम न केवल एक राजनीतिक संदेश था, बल्कि जन-संवेदना और लोकतांत्रिक चेतना का प्रतीक बन गया।