एक तरफ पूर्व IPS शिवदीप वामनराव लांडे, दूसरी ओर पूर्व DSP अखिलेश कुमार — जनता में चर्चा तेज, युवाओं में जोश चरम पर
श्रवण आकाश, अररिया (बिहार) बिहार विधानसभा चुनाव का रण इस बार अररिया जिले में और भी दिलचस्प हो गया है। यहां सियासत की जंग में दो ऐसे चेहरे आमने-सामने हैं, जिन्होंने वर्दी में रहते हुए अपराधियों के दिल में खौफ और जनता के दिल में भरोसा पैदा किया था। एक हैं पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे, जो अररिया से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोक रहे हैं, और दूसरे हैं पूर्व डीएसपी अखिलेश कुमार, जिन्होंने नरपतगंज सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया है। दोनों ही पूर्व पुलिस अधिकारी आज भी युवाओं के बीच यूथ आइकॉन के रूप में जाने जाते हैं।

वर्दी से राजनीति तक—दो सुपर कॉप की नई पारी
बिहार पुलिस के इतिहास में दोनों अफसरों की अलग-अलग पहचान रही है। 2006 बैच के आईपीएस शिवदीप वामनराव लांडे का नाम आज भी अपराधियों के लिए भय और जनता के लिए भरोसे का प्रतीक है। अररिया में बतौर एसपी उनके कार्यकाल के दौरान अपराध पर जिस तरह नकेल कसी गई थी, उसकी चर्चा आज भी लोगों की जुबान पर है। अपराधियों ने जिले की सीमाएं छोड़ दी थीं, और “लांडे बाबा” नाम से उन्हें जनता आज भी याद करती है।

वहीं दूसरी ओर, पूर्व डीएसपी अखिलेश कुमार ने भी अपनी सेवा अवधि में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल पेश की। बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में नौवीं वरीयता प्राप्त कर डीएसपी बने अखिलेश कुमार अब शिक्षा के क्षेत्र में युवाओं के मार्गदर्शक बने हुए हैं। वर्तमान में वे पटना साइंस कॉलेज में प्राणी विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं और गरीब मेधावी छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं।
यूथ आइकॉन, जनता के बीच दोनों की मजबूत पकड़
दोनों ही अधिकारी अपनी छवि और कार्यशैली से जनता के दिलों में गहरी पैठ बना चुके हैं।
शिवदीप लांडे ने जब अररिया में बतौर एसपी कार्य किया, तो घटनास्थल पर खुद पहुंचकर ताबड़तोड़ कार्रवाई की। चाहे हाथी दांत तस्करी का मामला रहा हो या रानीगंज में कब्र से लाश गायब होने का रहस्य, हर केस में उन्होंने सटीक कार्रवाई कर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया।
जनता उन्हें “एक्शन मैन” और “सुपर कॉप” कहकर पुकारती है।
दूसरी तरफ, अखिलेश कुमार अपने विनम्र स्वभाव और समाज सेवा के लिए जाने जाते हैं। उनका नारा “आप वोट दें या न दें, अपने बच्चों को मुझे सौंपें — मैं उनका भविष्य बनाऊंगा” आज भी इलाके के युवाओं में जोश और विश्वास भर देता है। उन्होंने सैकड़ों युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिलाने में मार्गदर्शन किया है।
राजनीति में नई बयार — दोनों का मिशन ‘व्यवस्था परिवर्तन’
दोनों पूर्व अफसर अब राजनीति के अखाड़े में जनता की सेवा को नया रूप देना चाहते हैं।
लांडे जहां व्यवस्था परिवर्तन और युवाओं की आवाज को सशक्त करने की बात कर रहे हैं, वहीं अखिलेश कुमार शिक्षा, रोजगार और ग्रामीण सशक्तिकरण को अपनी प्राथमिकता बता रहे हैं।
शिवदीप लांडे ने इस बार न सिर्फ अररिया बल्कि मुंगेर के जमालपुर से भी नामांकन दाखिल किया है। उनके ससुर महाराष्ट्र के शिंदे गुट के विधायक और पूर्व मंत्री विजय शिवतारे हैं, जो खुद एक उद्योगपति भी हैं। लांडे को “मराठी शक्ति” और “बिहारी जोश” के संगम के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं अखिलेश कुमार के लिए नरपतगंज की जमीन पहले से जानी-पहचानी है। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 4,891 वोट हासिल किए थे। इसके अलावा 2019 लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने 5,120 वोट प्राप्त किए थे। हालांकि वह जीत से दूर रहे, पर उनकी साफ छवि और शिक्षा के प्रति समर्पण ने लोगों के बीच उन्हें अलग पहचान दी।
चुनावी समीकरण और जनता की धार
अररिया जिले में कुल छह विधानसभा सीटें हैं, पर सबसे ज्यादा चर्चा इन दो सीटों — अररिया और नरपतगंज — की है।
जनता के बीच सवाल यही है कि क्या लांडे का एक्शन और अखिलेश का एजुकेशन मिशन वोट में तब्दील हो पाएगा?
युवाओं का बड़ा वर्ग दोनों के समर्थन में खुलकर चर्चा कर रहा है।
चाय दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह अब एक ही बहस —
“कौन जीतेगा EX सुपर कॉप की जंग?”
अंतिम फैसला जनता के हाथ में
बिहार की राजनीति में यह पहला मौका है जब दो पूर्व पुलिस अधिकारी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सीधे जनता के भरोसे मैदान में हैं।
एक ने अपराध मिटाकर व्यवस्था सुधारी, तो दूसरे ने शिक्षा से समाज सुधारने का बीड़ा उठाया।
अब देखना दिलचस्प होगा कि जनता की अदालत में किस सुपर कॉप को मिलेगा जीत का मेडल —
वर्दी वाले लांडे को या पढ़ाई वाले अखिलेश को।