कोई बिटिया नन्हीं गुड़िया,
मेरे घर में भी आई होती।
बनकर के खुशियों की बदली,
मेरे आंगन में भी छाई होती।
नन्हें से नाजुक हाथों से वो,
कभी थाम लेती उंगली मेरी।
चटकीले रंग बिखेर रखती,
वो प्यारी सी तितली मेरी।
मेरा ही साया मेरी ही छाया,
मेरी ही वो प्रतिध्वनि होती।
दे देते भगवन एक बिटिया,
जीवन में कुछ न कमी होती।
अब क्या मैं करु शिकायत भी
इसका कुछ भी आधार नहीं।
मैं कितना प्यार उसको करती,
कोई इसका है पारावार नहीं।
मुक्ता शर्मा मेरठ