क्या मनोज सिन्हा बन सकते हैं भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष?

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लेखक: नवनीत कुमार  / 2024 के आम चुनावों के बाद भाजपा जिस दौर में प्रवेश कर रही है, उसमें नए नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण होने जा रही है। अगर पार्टी एक शांत, विवेकशील और अनुभवी नेतृत्व की तलाश में है, तो मनोज सिन्हा न केवल एक विकल्प हैं, बल्कि एक संभावित दिशा भी हैं।

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक बार फिर बदलाव की दहलीज़ पर खड़ी है। पार्टी के भीतर और बाहर, यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि आगामी समय में राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ऐसा चेहरा आ सकता है जो संगठन और सरकार—दोनों को साथ लेकर चल सके। इसी क्रम में मनोज सिन्हा का नाम बड़ी तेज़ी से उभरा है।

गाजीपुर से दिल्ली और फिर श्रीनगर तक का सफर

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आने वाले मनोज सिन्हा का राजनीतिक जीवन संघर्ष और सादगी की मिसाल है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) से जुड़कर उन्होंने छात्र राजनीति से सफर की शुरुआत की। भाजपा के टिकट पर कई बार सांसद चुने गए और रेल राज्य मंत्री जैसे अहम पदों पर काम किया।

वर्ष 2017 में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा को मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की तलाश थी, तब मनोज सिन्हा का नाम सबसे आगे था। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा थी कि उनकी छवि साफ-सुथरी है, वे संगठन और प्रशासन दोनों में बैलेंस बना सकते हैं। लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला।

राजनीतिक असफलता नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का विस्तार

2019 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से हारने के बाद किसी और नेता का मनोबल टूट जाता, लेकिन मनोज सिन्हा ने हार को जिम्मेदारी में बदल दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का उन पर विश्वास बरकरार रहा और उसी का परिणाम था कि 2020 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया।

श्रीनगर की संवेदनशील गलियों से लेकर पुलवामा के स्कूलों तक, मनोज सिन्हा ने वहां एक नए प्रशासनिक मॉडल की शुरुआत की—”विकास और विश्वास” का। उनका कार्यकाल इस बात का प्रमाण है कि बिना शोर-शराबे के भी परिवर्तन लाया जा सकता है।

भाजपा के लिए आदर्श अध्यक्ष?

भाजपा एक ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो केवल चुनावी जीत नहीं, बल्कि संगठनात्मक शक्ति पर भी भरोसा करती है। ऐसे में मनोज सिन्हा जैसे नेता, जो संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिन्होंने संगठन के साथ सरकार दोनों में काम किया है, एक आदर्श अध्यक्ष साबित हो सकते हैं।

उनकी सबसे बड़ी ताकत है – विश्वसनीयता। वे नेताओं में भरोसा पैदा करते हैं और कार्यकर्ताओं में अनुशासन। सोशल मीडिया की चमक से दूर, वे जमीनी राजनीति के खिलाड़ी हैं।

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