पूर्व जन्म कि वृन्दा,
तुलसी बन गई आए,
राक्षस कुल जन्म पाए के,
हरि भक्तिन रही कहाए,
दानव राज जलंधर से,
तुलसी का विवाह सम्पन हुआ,
दानव राज जलंधर जो,
सागर मंथन से उत्पन हुआ,
देव दानव का युद्ध बहुत,
विकट हुआ विकराल,
दानव राज जलंधर की,
तुलसी की भक्ति बन गई ढाल,
तुलसी कहे जलंधर से,
स्वामी सत्य कहुं मैं वैन,
बाल न बांका होए तुम्हारा,
चाहें युद्ध करो दिन रैन,
हरि पूजा मैं करू,
सत्य को धारण कर,
जब तक मैं हरि पूजा करूं,
तबतक,
प्राण सके तुम्हारे कोई न हर,
इधर तुलसी पूजा में बैठ गई,
उधर जलंधर युद्ध करे विकराल,
देवताओं की जलंधर के सनमुख,
गल सकी न दाल,
देव हरि निकट आये के,
ऐसी विनती रहे सुनाये,
जलंधर दानव मारा जाये,
प्रभू कुछ ऐसो दियो उपाये,
हरि नारायण बोल उठे,
बात कहु मैं सुलझी,
ये जलंधर न मारे मरे,
मेरी पूजा जब-तक करती रहेगी तुलसी,
देवताओं की प्रार्थना सुन,
हरि ने सोच लियो एक उपाय,
तुलसी के पती जलंधर का,
लियो हरि ने रुप बनाये,
जलंधर रुप बनाकर के,
हरि गये तुलसी सनमुख आये,
पूजा से तुलसी उठ गई,
हरि को देख पती रूप में आये,
इधर पूजा खंडित होते ही,
युद्ध भय से हुआ भंयकर,
तब देवताओं के हाथों से,
मारा गया जलंधर,
छल करके भगवान भी,
रहे भक्त से डर,
तब तुलसी के आ सनमुख गिरा,
उसके पति का सर,
तब अपने रूप में आ गये,
श्री हरि नारायण,
बोली तुलसी हे प्रभू,
इस छल का किया था कारण,
आठो पहर मैं तो प्रभू,
तुम को करुं प्रणाम,
मेरी इस हरि भक्ति का,
ये कैसा हुआ परिणाम,
जिस हरि के नाम का,
तुलसी करती जाप,
उसी हरि नारायण को,
तुलसी ने दे दिया श्राप,
तुलसी बोली आप भी प्रभू,
इस छल का भुकतो परिणाम,
श्राप है मेरा आप को प्रभू,
आप हो जाओ पत्थर सालिकराम,
सती पती संग हो गई,
पती संग उसकी काया झुलसी है,
उसी भस्म की राख से उत्पन,
हुई पौधा रूप में तुलसी है,
बोले हरि नारायण मैं इस,
पत्थर रूप में भाउंगा,
सालिकराम रूप में मै भी,
तुलसी संग पूजा जाउंगा,
माया नवीन नवीन सदा,
रचता रहा विधाता है,
राही निडर ने खोज कर पाया,
तुलसी स्वयं लक्ष्मी माता है।
।। सालिकराम भगवान की जय।।
।। तुलसी माता की जय।।