आ. मदनमोहन मालवीय जी (25.12.1861-12.11.1946) एक शिक्षा सुधारक, राजनीतिज्ञ ही नहीं महान भारतीय विद्वान, पत्रकार ,वकील और दूरगामी सोच के प्रखर ,सरल हृदय व्यक्तित्व के स्वामी थे। अखिल भारतीय हिंंदू महासभा के संस्थापक थे। मालवीय जी तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनकी अग्रणी भूमिका रही है।
तत्कालीन इलाहाबाद और वर्तमान में प्रयागराज में 25 दिसंबर’1864 में जन्मे मालवीय जी 84 वर्ष की आयु में 12 नवंबर’ 1946 को प्रयागराज में ही इस संसार को अलविदा कह गये। यह विडंबना ही है महामना जी के जीवन काल में आज का प्रयागराज तत्कालीन इलाहाबाद उत्तर पश्चिमी प्रांत के रुप में ब्रिटिश भारत का अंग था।
यह भी आश्चर्य जनक है कि जिस कांग्रेस पार्टी के वे तीन बार अध्यक्ष रहे, उसी कांग्रेस पार्टी ने उनकी उपेक्षा भी खूब की। 24.12.2014 को उनकी 153 वीं जयंती से एक दिन पूर्व में भाजपा की मोदी सरकार ने उनको मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान देकर उनकी महत्ता को वास्तविक सम्मान दिया।
यह मालवीय जी की सोच का ही परिणाम रहा कि भारतीय को आधुनिक शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ाने के लिए बीएचयू अधिनियम 1915 के तहत 1916 में बनारस हिंंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। जिसे एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय का गौरव प्राप्त है।जहां दुनिया भर के लगभग 40,000 से अधिक छात्र/छात्राएं शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यही नहीं 1919-1938 तक इसके कुलपति पद पर आसीन रहे।
भारत स्काउट्स एण्ड गाइड्स के संस्थापकों में एक रहे मालवीय जी ने 1906 में प्रयागराज(तब इलाहाबाद) से प्रकाशित लोकप्रिय समाचार पत्र ” द लीडर” की स्थापना करने के अलावा 1924-1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी रहे।उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि 1936 में हिंदुस्तान हिंदी संस्करण का प्रकाशन शुरु हो पाया।
मालवीय जी सफल समाज सुधारक ही नहीं सफल सांसद भी थे।उनके महान कार्यों की बदौलत ही उन्हें महामना कहा जाता है।
एक तथ्य यह भी है कि राष्टृपिता महात्मा गाँधी उन्हें अपना अग्रज मानते थे और महामना की उपाधि उन्होंने ही मालवीय जी को दिया था।
“सत्यमेव जयते” नारे को लोकप्रिय बनाने का श्रेय मालवीय जी को ही जाता है।
मालवीय जी ने नवयुवकों में भारतीय संस्कृतिको जीवंत बनाये रखने और उनके चरित्र निर्माण की खातिर ही बीएचयू की स्थापना की ।
भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले महामना का मानना था कि भारत का प्रत्येक निवासी हिंंदू है।
आज राष्ट्र के हर नागरिक को ऐसी महान विभूति के सिद्धांतों, विचारों, कार्यों के उनकी वैचारिकता को आत्मसात करने की जरुरत है। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
👉सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा ,उ.प्र.