रणछोड़

डॉ.इन्दु कुमारी

जिस बातों की है वियोग
छोड़ कर भागा रणछोड़
ढूँढती है नैना तुझको
भूल गए सलोने मुझको
वेदना हमें मिले उपहार
क्या ये है तुम्हारा प्यार
छलिया है, तू रंगरसिया
वियोग की बजै बसिया
ह्रदय कमल में हो बैठै
तिरछे गड़े अड़े हो ऐसे
प्रवेश कर तीर के जैसे
निकले जान लेकर ही
क्रंदन करने छोड़ गया
हमसे मुख तू मोड़ गया
होगी ही मिलन की भोर
आओगे रे तू रणछोड़ ।
डॉ. इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *