अय जिन्दगी तुम उदास क्यूं है
असफलता से नाराज क्यूं है
कब तलक तुँ इससे धबरायेगा
जीवन में अनेक मोड़ आयेगा
मुसीबत का सामना तुम्हें करना है
विघ्न बाधा से क्या घबराना। है
जीवन पथ पर ये आता जाता है
पर स्थाई रूप से कब ठहर पाता है
हर काली रात की सुबहा होती है
सूरज की ज्योति से तम भाग जाती है
अँधेरा प्रकाश से डर कर छुप जाता है
फिर धरा पर प्रकाश का राज हो जाता है
जीवन में अगर अंधेरा छाया है अब
हर सुबह का सूरज नभ पे आया है तब
मत रूठ जीवन से जग में तुम सब
जो रूठा है आज कल तेरा है जग
जीवन सरिता की धारा है
सुख दुःख नदी की किनारा है
एक आता है एक लौट जाता है
जीवन में ठहर कब पाता है
ना घबरा असफलता से तुम अब
असफता है कुंजी सफलता का तब
जो ठोकर धरा पर ना तुँ खायेगा
अच्छा बुरा समझ कैसे तुम पोयगा
काँटो से भरी पथ पर भी चलना है
जीवन की सफर तय भी करना है
मंजिल तुम्हें आज पुकार रही है
तेरी राह तुम्हें . रोज बुलाती है
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार