॥ जिन्दगी तुम उदास क्यूं है ॥ रचना ॥ उदय किशोर साह ॥ मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

uday kishor bihar banka

अय जिन्दगी तुम उदास क्यूं है
असफलता से नाराज क्यूं   है
कब तलक तुँ इससे धबरायेगा
जीवन में अनेक मोड़ आयेगा

मुसीबत का सामना तुम्हें करना है
विघ्न बाधा से क्या घबराना।     है
जीवन पथ पर ये आता जाता है
पर स्थाई रूप से कब ठहर पाता है

हर काली रात की सुबहा होती है
सूरज की ज्योति से तम भाग जाती है
अँधेरा प्रकाश से डर कर छुप जाता है
फिर धरा पर प्रकाश का राज हो जाता है

जीवन में अगर अंधेरा  छाया है अब
हर सुबह का सूरज नभ पे आया है तब
मत रूठ जीवन से जग में  तुम   सब
जो रूठा है आज कल तेरा है    जग

जीवन सरिता की धारा है
सुख दुःख नदी की किनारा है
एक आता है एक लौट जाता है
जीवन में ठहर कब पाता    है

ना घबरा असफलता से तुम अब
असफता है कुंजी सफलता का तब
जो ठोकर धरा पर ना तुँ खायेगा
अच्छा बुरा समझ कैसे तुम पोयगा

काँटो से भरी पथ पर भी चलना है
जीवन की सफर तय भी करना है
मंजिल तुम्हें आज पुकार रही है
तेरी राह तुम्हें . रोज बुलाती है

उदय किशोर साह
मो० पो०  जयपुर जिला बाँका बिहार

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