कहां गयी हरियाली मखमल?
कहां नदिया का निर्मल जल?
वन, जंगल, ऊंचे पर्वत, झील, झरने,
डोलते, झूमते, बूंदों की सरगम सुनाते।।
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी,पवन पुरवाई,
बगिया की बहार, सुरभित अपूर्वाई?
रंगरंगीले फूल, तितलियां अलबेली,
मौन भ्रमर गुंजन, पंछियों का कलरव?
हुआ कैसे सृष्टि का प्रदूषित बदरंग रूप,
सूखा, अकाल, बाढ़, तूफान का प्रकोप?
करता कौन प्रकृति से खिलवाड़, ए नादान,
सूरज, चंदा, तारे दीपित, सृष्टि चक्र महान।।
अब तो जागो, चेतो, बनो पर्यावरण सुमीत मित्र,
प्लास्टिक, रासायनिक कचरा फेंको न यत्र तत्र।।
आओ, उगाए पेड़, हर गली, हर मोड़,
तोड़े न कोई वृक्ष, वन, जंगल, पहाड़।।
सरिता सलिल सुंदर निर्मल, पावन जीवनधार,
हराभरा सुरभित जीवन, सुख, आनंद आधार।।
रहे प्रेमभाव से, सेवा, समर्पण जीवन में सदाचार,
मानव जन्म कर दे सफल, अनुरागी सुविचार।।
स्वरचित मौलिक रचना
चंचल जैन
मुंबई
महाराष्ट्र