श्रवण आकाश, खगड़िया खगड़िया जिले की चर्चित 151-परबत्ता विधानसभा सीट पर शुक्रवार को उस समय सियासी हलचल तेज हो गई जब नामांकन पत्रों की जांच के दौरान आठ प्रत्याशियों के नामांकन रद्द कर दिए गए। निर्वाचन पदाधिकारियों की कार्रवाई से स्थानीय राजनीति में हड़कंप मच गया है। जिन उम्मीदवारों का नामांकन निरस्त हुआ है, उनके समर्थक अब कानूनी विकल्पों और नई रणनीति पर विचार कर रहे हैं।

गोगरी अनुमंडल निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार जिन प्रत्याशियों के नामांकन रद्द हुए हैं, उनमें अवनीश कुमार (श्रीरामपुर ठुट्ठी), शंकर कुमार चौधरी (भरतखंड), अच्युतानंद पासवान (मदारपुर), सतीश प्रसाद सिंह (करना), सोनू कुमार (कन्हौली), आदित्य कुमार (कन्हैयाचक), नविता कुमारी (कोरचक्का) और राकेश कुमार शर्मा (जमालपुर, गोगरी) शामिल हैं।
अधिकारियों के मुताबिक, नामांकन पत्रों में दस्तावेजों की अपूर्णता, शपथपत्र संबंधी त्रुटियां और समय पर जरूरी कागजात जमा न करने जैसी कमियां सामने आईं। निर्वाचन कार्यालय ने स्पष्ट किया कि पूरी प्रक्रिया निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत पारदर्शी तरीके से पूरी की गई। रद्द किए गए अभ्यर्थियों को आपत्ति दर्ज करने का अवसर दिया गया था, और वे चाहें तो आयोग में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं।
इस अप्रत्याशित रद्दीकरण से परबत्ता की चुनावी तस्वीर अचानक बदल गई है। अब मुकाबला पहले से कहीं अधिक सीधा और केंद्रित हो गया है। स्थानीय विश्लेषकों का मानना है कि कई निर्दलीय उम्मीदवारों के बाहर होने से मुख्य दलों — राजद, जदयू, लोजपा और एनडीए गठबंधन — के बीच समीकरण नए सिरे से बनेंगे।
एक स्थानीय राजनीतिक पर्यवेक्षक के अनुसार,
“परबत्ता हमेशा से हॉट सीट रही है। अब आठ नामांकन रद्द होने से यह जंग दो-तरफा या त्रिकोणीय रूप ले सकती है, जिससे वोटों का ध्रुवीकरण और तेज़ होगा।”
वहीं, जिन प्रत्याशियों का नामांकन खारिज हुआ है, उन्होंने तकनीकी आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया है। कुछ ने कहा कि उन्हें मौके पर त्रुटियां सुधारने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया। निर्वाचन पदाधिकारियों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और नियमों के अनुरूप” रही।
अब परबत्ता सीट से बचे उम्मीदवारों के बीच जंग और दिलचस्प हो गई है। एनडीए के “तीर”, लोजपा के “हेलिकॉप्टर” और महागठबंधन के “लालटेन” के बीच इस बार की जंग बेहद रोमांचक मानी जा रही है।
अब देखना यह होगा कि रद्दीकरण के इस झटके के बाद परबत्ता की राजनीति किस करवट लेती है — विकास की या विवाद की।