परबत्ता में लोजपा – राजद के बीच टसमाटसल मुकाबला, जनता खामोश पर माहौल गरम
श्रवण आकाश, खगड़िया। खगड़िया जिला की हॉट सीट परबत्ता विधानसभा में इस बार का चुनावी संग्राम अपने चरम पर है। यहां सियासी तराजू इस कदर झूल रहा है कि यह तय करना मुश्किल हो गया है — जीत का पलड़ा लालटेन छाप के पक्ष में झुकेगा या हेलिकॉप्टर उड़ान भरेगा। एक ओर राजद प्रत्याशी और मौजूदा विधायक डॉ. संजीव कुमार अपनी राजनीतिक विरासत और विकास कार्यों के दम पर मैदान में हैं, तो दूसरी ओर लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी बाबूलाल सौर्य एनडीए गठबंधन की ताकत के सहारे जनता को रिझाने में जुटे हैं।

महागठबंधन की ओर से प्रचार की कमान खुद डॉक्टर संजीव कुमार ने संभाल रखी है। उनके साथ बड़े भाई सह विधान पार्षद राजीव कुमार जनता के बीच पांच साल की उपलब्धियों का लेखा-जोखा पेश कर रहे हैं। जनसंपर्क के दौरान संजीव अपने पिता आर.एन. सिंह उर्फ रामानंद प्रसाद सिंह की राजनीतिक विरासत को सामने रख जनता से भावनात्मक अपील कर रहे हैं। वे कहते हैं —
“परबत्ता की सेवा हमारे परिवार की परंपरा रही है। हमने वादा नहीं, विकास दिखाया है।”
उनकी सभाओं में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं। वहीं सैकड़ों समर्थकों की उमड़ती भीड़ राजद खेमे के हौसले को नई ऊर्जा दे रही है।

एनडीए की ओर से लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी बाबूलाल सौर्य मोर्चा संभाले हुए हैं। उनके साथ सांसद राजेश वर्मा और कई शीर्ष नेता प्रचार में जुटे हैं। सौर्य अपने दादा त्रिवेणी कुंमर (परबत्ता के प्रथम विधायक) और माता रीना देवी, मुखिया सियादतपुर अगुवानी पंचायत, उनके जनसेवा कार्यों को वोट मांगने का आधार बना रहे हैं।
वे कहते हैं —
“परबत्ता को अब नई उड़ान देनी है, और वह एनडीए सरकार के ही बूते संभव है।”
सौर्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चिराग पासवान की विकास नीतियों को जनता के सामने “भरोसे के मॉडल” के रूप में पेश कर रहे हैं।
इस बार मुकाबला सिर्फ दो प्रमुख दलों तक सीमित नहीं है। जनसुराज पार्टी के विनय कुमार वरुण प्रशांत किशोर (PK) के विचारों और स्वच्छ राजनीति के एजेंडे के सहारे युवा मतदाताओं को लुभा रहे हैं। महिलाओं और ग्रामीण तबके में धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही हैं। इससे वोटों का समीकरण और अधिक दिलचस्प हो गया है।
खामोश जनता, गरम माहौल
गांव की चौपालों, चाय दुकानों और बाजारों में चुनावी चर्चाओं का दौर तो है, लेकिन जनता अब तक खामोश है। लोग कहते हैं —
“मुकाबला फिफ्टी-फिफ्टी है, फैसला जनता के मन में बंद है।” कहीं “लालटेन छाप” की निष्ठा दिखती है तो कहीं “हेलिकॉप्टर” की हवा तेज़ है, लेकिन परबत्ता के वोटर अपनी पसंद जाहिर नहीं कर रहे।
फिलहाल अब सबकी निगाहें मतदान दिवस और मतगणना तिथि 14 नवंबर पर टिक गई हैं।
क्योंकि इस बार परबत्ता में सियासत, साख और सम्मान — तीनों दांव पर हैं। देखना यह होगा कि जनता का वोट तराजू के किस पलड़े को भारी बनाता है — लालटेन छाप का या हेलिकॉप्टर का,
क्योंकि इस बार परबत्ता में लड़ाई सचमुच “टसमाटसल” है।
परबत्ता की जनता चुप है, पर उसकी खामोशी में 2025 के नतीजे का बड़ा धमाका छिपा है —
कौन जीतेगा यह नहीं कहा जा सकता, पर इतना तय है कि इस बार का चुनाव सिर्फ वोट नहीं, इज़्ज़त और विरासत की लड़ाई बन गया है।