बिहपुर 2025 –  सियासत की सबसे बड़ी रणभूमि बनने को तैयार

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जहाँ हर मोहरे की चाल, सत्ता की शतरंज को बदल सकती है…

भागलपुर जिले के गंगा पार स्थित बिहपुर विधानसभा में इस बार की जंग सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि सियासी महायुद्ध होगी। यहां की ज़मीन न केवल उपजाऊ है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी हमेशा से उबाल पर रही है। वर्ष 2025 का विधानसभा चुनाव इस सीट को एक बार फिर से राष्ट्रीय और प्रादेशिक राजनीति के केंद्र में ला खड़ा करेगा।


⚔️ राजनीति की प्रयोगशाला बनी बिहपुर

बिहपुर वो सीट है जहां जातीय समीकरण, विकास बनाम वंशवाद, और पुराने बनाम नए चेहरे—तीनों का जबरदस्त टकराव देखने को मिल रहा है। ये वही सीट है, जहां भूमिहार बनाम मंडल, हिंदुत्व बनाम सामाजिक न्याय की लड़ाई हर दौर में नया मोड़ लेती रही है।


🌾 खेती और राजनीति का गढ़

गंगा और कोसी नदी के बीच बसा बिहपुर कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहां केला, मक्का, आम, और लीची की भरपूर पैदावार होती है। किसान और मजदूर बहुल यह क्षेत्र चुनाव में जिस ओर जाता है, वहां जीत की राह बनती है। यहां यादव-मुस्लिम गठजोड़ ही निर्णायक शक्ति बनती आई है, लेकिन भूमिहार समाज का वोट कभी भी समीकरण पलट सकता है।


🔁 इतिहास के आईने में बिहपुर

  • 1990 से पहले: कांग्रेस और वाम दलों का दबदबा
  • 2000 के बाद: मुकाबला सीमित हुआ राजद बनाम भाजपा तक
  • 2000–2005: राजद के बुलो मंडल का दबदबा
  • 2010: भाजपा के ई. कुमार शैलेंद्र की पहली जीत
  • 2015: बुलो मंडल की पत्नी वर्षा रानी ने भाजपा को हराया
  • 2020: शैलेंद्र ने पुनः जीत दर्ज कर राजद का गढ़ ध्वस्त किया

🧨 सियासी समीकरणों का विस्फोट

2024 लोकसभा चुनाव से पहले बुलो मंडल का राजद छोड़कर जदयू में शामिल होना, पूरे क्षेत्र की राजनीति को हिला गया। इसके बाद राजद में नई लीडरशिप उभरने लगी, जिससे मुकाबला और भी दिलचस्प बन गया।


🔍 कौन-कौन मैदान में?

🟠 भाजपा:

  • ई. कुमार शैलेंद्र (सिटिंग विधायक) – अनुभवी और संगठित नेता
  • लेकिन अंदरूनी असंतोष और जातीय समीकरणों से चुनौती

🔴 राजद:

  • अवनीश कुमार – युवा चेहरा, यादव-मुस्लिम के साथ भूमिहार समाज में भी बना रहे पकड़
  • राजद का टिकट इन्हें मिलता है या नहीं, इस पर सबकी नज़र

🔵 कांग्रेस:

  • नवीन शर्मा (पूर्व विधायक राजेंद्र शर्मा के पुत्र)
  • निखिल सिंह (एमएलसी राजीव सिंह के पुत्र)
  • अजीत शर्मा के बेटे का भी नाम चर्चा में
  • वंशवाद बनाम जनाधार की बहस छिड़ी हुई है

🟢 जनसुराज:

  • भूमिहार बाहुल्य क्षेत्र होने से मजबूत दावेदारी संभव
  • सामाजिक न्याय और बदलाव के वादे के साथ जनसुराज की रणनीति तैयार

🟣 स्थानीय चेहरे:

  • रेणु चौधरी (जिला पार्षद) – जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़, महिला मतदाताओं में असर

🧠 राजनीतिक विश्लेषण क्या कहता है?

विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव सीधा नहीं, बल्कि बहुकोणीय होगा।

  • भाजपा के लिए हिंदुत्व कार्ड ज़रूरी हो सकता है, पर क्या जातीय संतुलन बिगड़ेगा?
  • राजद किसे टिकट देगा, और क्या वह नया सामाजिक समीकरण बना पाएगा?
  • कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन कैसे वापस पाएगी?
  • और जनसुराज क्या केवल शोर करेगा या वोट भी बटोरेगा?

चुनावी युद्ध में ये सवाल सबसे अहम:

  1. क्या भाजपा अपने पारंपरिक भूमिहार वोट बैंक को जोड़े रख पाएगी?
  2. राजद की नई लीडरशिप मैदान में खुद को साबित कर पाएगी?
  3. जनसुराज सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रहेगा या ज़मीन पर भी कुछ कर पाएगा?
  4. क्या स्थानीय चेहरों की भूमिका अंततः किंगमेकर जैसी होगी?

🔚 अंतिम निष्कर्ष: रण का बिगुल बज चुका है…

बिहपुर की लड़ाई सिर्फ एक सीट की नहीं, विचारधाराओं, जातीय समीकरणों और नई लीडरशिप की अग्निपरीक्षा है। जो यहां जीतेगा, वह न केवल विधानसभा पहुंचेगा बल्कि पूरे गंगा पार की राजनीति में लहर पैदा कर सकता है।

अब देखना यह है कि कौन जनता के दिल में जगह बनाता है, और कौन केवल नारों में सिमट जाता है

2025 की सबसे दिलचस्प सीट — बिहपुर!
सियासत की बिसात सज चुकी है, अब राजा कौन और प्यादा कौन, यही देखने लायक होगा।

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