भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में तांत्रिक विधि से होती है माँ दुर्गा की पूजा ।। Inquilabindia

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  • चार सौ वर्ष पुराना भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर का है इतिहास
  • 125 फिट ऊंची बनाई जा रही है मंदिर, जयपुर के प्रसिद्ध शिल्पी बना रहे गुम्बद

नवगछिया। अनुमंडल क्षेत्र अंतर्गत नारायणपुर प्रखंड के भ्रमरपुर स्थित सिद्धपीठ मणिद्वीप के नाम से विश्व भर में विख्यात देवी दुर्गा मंदिर का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना है। दुर्गा मंदिर कमिटी के अध्यक्ष सह प्रसिद्ध भजन गायक डॉ हिमांशु मिश्रा उर्फ दीपक मिश्रा ने बताया कि जिस तरह भगवान श्रीराम का निवास स्थल साकेत है, श्रीकृष्ण का गौलोक और देवादिदेव भगवान शिव का कैलास है, इसी प्रकार देवी दुर्गा का निवास स्थल मणिद्वीप में है। कहा जाता है भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में माँ अपने सहगामिनियों के साथ निरंतर निवास करती है, इसलिए भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर साक्षात मणिद्वीप है। डॉ मिश्रा ने बताया कि 350 वर्ष पूर्व बिरबन्ना ड्योढ़ी के क्षत्रीय और भ्रमरपुर के भागीरथ झा के परिवार के द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। जहां यह मंदिर स्थित है, वहां 350 वर्ष पूर्व मंदिर के समीप ही गंगा नदी बहती थी। उस वक्त यहां के एक हजार ब्राह्मणों ने स्नान कर भींगे वस्त्र में गंगा नदी की मिट्टी अपने हाथ मे लेकर दुर्गा मंदिर की जगह पर लाकर रख दिया और उसी गंगा की मिट्टी को मंत्र से अभिमंत्रित कर माँ की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। दुर्गा माता का वही पिंड आज विशाल प्रतिमा के रूप में स्थापित है। शारदीय नवरात्री के अवसर पर मंदिर में इलाके भर के ब्राह्मण मंदिर प्रांगण में बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। उसके बाद अन्न जल ग्रहण करते हैं। यहां जितना सप्तशती का पाठ होता है, भारत के किसी दुर्गा मंदिर में नही होता है। इस मंदिर में तांत्रिक पद्धति से विस्तार पूर्वक नवरात्र की पूजा होती है। जिसमे पूजन के बाद प्रतिदिन बलि पड़ती है। नवरात्री में निशा पूजा के दिन देवी माँ की प्राण प्रतिष्ठा होती है। जबकि नवमी के दिन 12 सौ बलि दी जाती है। यहां नवरात्री में बिहार ही नही बल्कि देश विदेश के लाखों श्रद्धालु आकर माँ से मन्नतें मांगते है और मन्नत पूरी होने पर बलि चढ़ाते है।

  • तांत्रिक विधि से होती है माँ की पूजा, दी जाती है बलि
    भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में तांत्रिक पद्धति से विस्तार पूर्वक नवरात्र की पूजा होती है। बताया गया कि सन 1970 से पहले फूंस का मंदिर था। जो बिहार के सबसे बड़ा फूंस का मंदिर कहलाता था। 1971 में ग्रामीणों के सहयोग से यह मंदिर तैयार किया गया। मंदिर की ऊंचाई करीब 125 फिट से अधिक बनाई जा रही है। जिसे कोसों दूर से भी लोग देखे तो साक्षात माँ का दर्शन हो। वही मंदिर के गुम्बद निर्माण हेतु वृंदावन के शिखर के विशेषज्ञ शिल्पी को बुलाया गया है। तत्काल मंदिर का कार्य प्रगति पर है। जिनके द्वारा मंदिर का गुम्बद तैयार किया जा रहा वे केदारनाथ, ऋषिकेश आदि प्रसिद्ध मंदिरों में अपना कारीगरी दिखाया है। इस मंदिर में कलाकारों द्वारा चारो तरफ दुर्गा सप्तशती का लेखन जयपुर में लिखकर तैयार है। साथ ही साथ मंदिर में दुर्गा माँ की लीलाओं का चित्रण भी शीशे में स्थापित किया जाएगा। बता दें कि यहां चंपानगर से प्रतिमा बनाने वाले कारीगर चार पीढ़ियों से प्रतिमा बना रहे हैं। मंदिर में प्रखर विद्वान पंडित शशिकांत झा माँ दुर्गे की पूजा करते हैं। जबकि प्रधान पुजारी अभिमन्यु गोस्वामी जी पूजा पर बैठते है। वही सहयोग में छोटू गोस्वामी, सोनू गोस्वामी आदि भक्तगन लगे हुए हैं। नवरात्री पर लगने वाले भव्य मेले के लिए मंदिर के चारों ओर पर्याप्त जगह में तरह-तरह की दुकानें सजाई जा रही है। जिसमे ब्रेक डांस, टावर झूला, स्टार फीस, नौकाझूला, घोड़ाचक्र, दर्जनों मिठाई की दुकानें, श्रृंगारिक प्रतिष्ठान समेत फल फूल की सैकड़ो दुकानें लगाई गई है। हर ओर माता रानी के जयकारों से गुंजायमान है। बिहपुर थाने की पुलिस लगातार मेला परिसर पर नजर बनाए हुए हैं। तत्काल दो चौकिदार की प्रतिनयुक्ति मंदिर में कर दिया गया है।

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