किशनगंज के बहादुरगंज में जनसुराज पार्टी की ‘बदलाव सभा’ ने राजनीति कम और दावत ज़्यादा पेश की। मंच पर प्रशांत किशोर भाषण में बदलाव की गूंज भरते रहे, लेकिन मैदान में बिरयानी की खुशबू और मटन की महक ने जनता का पूरा ध्यान खींच लिया। नज़ारा कुछ ऐसा था जैसे कोई राजनीतिक रैली नहीं, बल्कि शाही भोज चल रहा हो!
दावत के आगे भाषण ढेर!
सभा में खाने का ऐसा इंतज़ाम था कि हर नुक्कड़ से आती दाल-भात, सब्जी, मटन और वेज बिरयानी की खुशबू ने लोगों को भाषण से ज़्यादा थालियों की ओर खींचा। नतीजा? भाषण स्थल पर कुर्सियाँ गिनती की, और खाने की लाइनें अंतहीन!
जनता ने दिखाया असली ‘जनमत’
जहाँ प्रशांत किशोर जनता से संवाद की बात कर रहे थे, वहीं जनता दावत से संवाद करने में व्यस्त थी। कहा गया कि करीब 5 हज़ार लोगों के लिए भोज का इंतज़ाम किया गया था, लेकिन इनमें से अधिकांश लोग सिर्फ खाने का जायका लेने पहुंचे, राजनीति का स्वाद चखने नहीं।
विपक्ष का तंज – “बिरयानी से नहीं होता बदलाव!”
राजनीतिक विरोधियों ने मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। कटाक्ष करते हुए कहा गया, “अब जनता भूख मिटाने आती है, भाषण सुनने नहीं।” विपक्ष का कहना है कि PK के कथित “जनजोड़” अभियान की पोल खुद उनके आयोजन ने खोल दी — जहाँ भीड़ तो थी, लेकिन एजेंडा से गायब!
राजनीति में ‘खाना-पार्टी’ का नया अध्याय?
इकरामुल हक और अबू बरकात जैसे जनसुराज कार्यकर्ताओं ने कोशिश तो की कि सभा में भीड़ दिखे, लेकिन अब सवाल उठता है — क्या भविष्य की राजनीति अब खाने के मेन्यू से तय होगी या नीति से?
बदलाव की रेसिपी में अगर सिर्फ बिरयानी हो और विचारों की भूख न मिटे, तो जनता की थाली तो भर जाएगी, मगर कुर्सियां खाली ही रहेंगी। PK को अब तय करना होगा — पार्टी की अगली सभा ‘राजनीति की बात’ करेगी या ‘प्लेट में स्वाद’ की!