बिहपुर में चिकित्सा के नाम पर एक नया “धंधा” फल-फूल रहा है। जगह-जगह फ़र्जी क्लीनिक खुल गए हैं, जहां न तो लाइसेंस की परवाह है और न ही मरीजों की जान की। खुलेआम ऑपरेशन हो रहे हैं, और इन क्लीनिकों को बढ़ावा देने में सफेदपोशों का “हाथ” है।
“स्वास्थ्य नहीं, व्यापार है यहां का मकसद”
ग्रामीण इलाकों के भोले-भाले लोगों को झूठे वादों और कम खर्चे के बहाने फंसाकर इन क्लीनिकों में लाया जाता है। यहां झोलाछाप डॉक्टरों की टोली न केवल इलाज कर रही है, बल्कि बिना किसी प्रशिक्षण के ऑपरेशन तक कर रही है। मरीजों की जान के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है।
“कौन है इनका रखवाला?”
यह सवाल हर जुबां पर है। लोगों का कहना है कि इन फ़र्जी क्लीनिकों पर प्रशासन की अनदेखी कोई संयोग नहीं, बल्कि साज़िश है। सफेदपोश नेता और रसूखदार लोग इन क्लीनिकों को अपने “प्रोटेक्शन” में चला रहे हैं। इन्हें न कानून का डर है, न प्रशासन की फिक्र।
‘मौत का ठेका’ सफेदपोशों के नाम
कहावत है, “जहां रखवाले ही लुटेरे बन जाएं, वहां न्याय की उम्मीद बेमानी है।” बिहपुर के इन क्लीनिकों पर यह बात सटीक बैठती है। यहां मरीज का इलाज नहीं, मौत का ठेका दिया जा रहा है। सफेदपोश नेताओं के लिए यह बस एक और “कमाई का जरिया” बन चुका है।
समाधान या तमाशा ?
प्रशासन और समाज के लिए यह सवाल है—क्या इन क्लीनिकों पर रोक लगेगी या फिर यह खेल यूं ही चलता रहेगा? जवाब जो भी हो, बिहपुर के लोग अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं।