नेतृत्व विहीन हो गई समाज युवाओं को आगे आना चाहिए – प्रो. नवल चौधरी (चर्चित अर्थशास्त्री व पूर्व प्राचार्य पटना कॉलेज, पटना)
●नौजवान आज धर्म-जाति की राजनीति में क्यों फंस गया है ?
बिहपुर के होटल में पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता को संबोधित करते हुए प्रो. नवल चौधरी ने कहा भारत की अर्थ व्यवस्था कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथ में सौंप दी गई है।
कांग्रेस-भाजपा और इसके घटक दल में आर्थिक नीति में कोई फर्क नही है, ये सब एक ही थाली के है।

बस वोट हासिल करने की अलग-अलग लोकलुभावन राजनीति है। कांग्रेस आई के मैडम इंदिरा जी (भारत की पूर्व प्रधानमंत्री) ने अमेरिका के साथ आईएमएफ समझौता ब-शर्त कुबूल की थी। जिसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तेजी से आगे लाया। अटल सरकार ने निजीकरण को और भी तेज़ गति दी। जिसमें यशवंत सिन्हा ने कहा हम विकास दर आगे लाएंगे। इस विकास दर को बढ़ाने के चक्कर में आम लोग-बाग के हाथों से रोजगार छीनकर काॅरपोरेटरों को मालामाल कर दिया।

फील गुड फेल कर गया। क्योंकि अमेरिकन/युरोपीयन साम्राज्यवाद के साथ मनमोहन जी के द्वारा फिर एक डील हुई और यूपीए की सरकार बनी जहां जनविरोधी कानून एसईजेड, एफडीआई नई शिक्षा नीति व निजीकरण को धड़ल्ले से लागू करने की पुरजोर कोशिश की गई। ये सब के सब शिक्षा, रोजगार, किसान-मजदूर, छात्र-नौजवान सबके खिलाफ था। अमेरिकन साम्राज्यवाद ने फिर एक नया मोहरा सामने लाकर रख दिया। इसे लाने से पहले धार्मिक उन्माद, घृणास्पद और झूठ का घिनौना खेल खेला जिसकी त्रासदी हम-सब झेल रहे है।

रोजगार विरोधी, किसान-मजदूर विरोधी बील लगातार मौजूदा भाजपा सरकार यहां की जनता पर थोपी जा रही है वही दूसरी तरफ समाज को इतना तोड़ने का भी कार्य कर रही जो रेंग भी नही सक रही है। किसान-मजदूर आंदोलन इतने दिनों से चल रही है लेकिन बिहार जो आंदोलन की भूमि रही है आज देखिए किस प्रकार चुप बैठी है। स्कूल-कॉलेज में शिक्षक नही, अस्पताल में डाक्टर नही कोईभी नर्सिग व्यवस्था नही (प्रखंड से लेकर जिला तक) आखिर जो रोजगार के संसाधन है आप उसे ही ध्वस्त कर देगें तो आर्थिक विकास आम जन का कैसे बढ़ेगा? और ये सवाल कौन करेगा ? गाँव-समाज में जो बैठकी होती थी खत्म हो गया, पुस्तकालय आंदोलन कहां है? विचार-विमर्श की राजनीति समाप्त हो गई।

मौके पर मौजूद सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार के गौतम कुमार प्रीतम ने पूछा कि आखिर समाज नेतृत्व विहीन कैसे हो गई क्या कारण है ? लोग राजनीति से घृणा क्यों करने लगे? आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका कहां छूट गई और क्यों ?

प्रोफेसर नवल चौधरी ने कहा ग्राम पंचायत चुनाव ने नेतृत्व को बर्बाद किया। पंचायती राज की जो संकल्पना थी वो तो लागू नही हुई सरकार इसे अपने मनमाफिक बनाकर एक षडयंत्र के साथ सामने लाकर रख दिया जिस आग में सब झूलस रहे हैं। सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक व्यवस्था में 50% की भागेदारी से आज भी कोसों दूर है। पंचायती राज में महिलाओं को 50% आरक्षण मिला है लेकिन वहां भी मुखिया पति, प्रमुख पति आदि का ही कब्जा है।

अंत में इन्होंने कहा युवाओं को आगे आकर कार्यक्रम आयोजित कर लोगों जागरूक करते हुए संगठित करना चाहिए। सबलोग विधायक-सांसद नहीं बन सकते लेकिन समाज को बेहतर बनाने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। वैचारिक-सैद्धांतिक और मौलिक अधिकार प्राप्त करने के लिए गोष्ठी सेमिनार आयोजित करनी चाहिए।

प्रोफेसर साहब को विदाई के समय गौतम कुमार प्रीतम व रेणू चौधरी ने खादी का अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।
मौके पर बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन बिहार के अनुपम आशीष, बिट्टू ठाकुर, राष्ट्र सेवा दल के रवीन्द्र सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता रेणु चौधरी, गौरव कुमार, चंदन कुमार, आदि उपस्थित रहे।

