एक ऐसी शख्सियत जिसकी पदचाप से भारतीय संसद झंकृत होती थी, जिसकी संसदीय बहस से नेहरू जैसे नेता सिर हिलाते थे, जिसने अपनी शर्तो पर राजनीतिक ऊंचाईयों को छुआ ।
एक ऐसी शख्सियत जिसके लिए कोई भी पद उसके स्वभिमान से ज्यादा मायने नही रखते थे, जिसने अपने विचारों का मान रखने के लिए एक झटके में प्रधानमंत्री पद को ठोकर मार दी ।
एक ऐसी शख्सियत जिससे प्रधानमंत्री डरते थे, इंदिरा गांधी डरती थी, मोरारजी देसाई डरते थे, चौधरी चरण सिंह डरते थे।
वजह थी सच्चाई ..
उन्होने कभी भी गलत का साथ नही दिया, जनता को धोखा नही दिया अपितु हमेशा राजनीति को अपने विचारों की नोक पर रखकर सपष्ट नीति से राज किया ।
वो व्यक्ति हैं बलिया के बाबू साहब, महान तेजस्वी, समाजवादी राजनेता एंव भारत के 8 वे प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर जी ।
आज उनके 14वें पुण्यतिथी पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आपसबो के बीच उनके जीवन से जुड़ी एक कहानी जो उनके व्यक्तित्व को दर्शाती है ।
बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद का समय ।
स्थान – देश की संसद ।
अटलबिहारीवाजपेयी जी संसद में अकेले सभी ‘सिक्युलरों’ से लोहा ले रहे थे । उस समय दो युवा नेता सबसे बड़े दबंग और तेजतर्रार माने जाते थे, ये दो जने थे शरद यादव और रामविलास पासवान ।
एक दिन संसद में चर्चा के दौरान अटल जी के सामने ये दोनों उद्दंडता करने लगे । तब वरिष्ठ नेता और जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर जी ने कहा – “शरद, रामविलास तुम्हारे पिछले जन्म के कुछ पुण्य कर्म है जिसके कारण तुम्हे अटल जी को सुनने का मौका मिला है ,इन्हे ध्यान से सुनो । ये स्वयं राजनीती के महाग्रंथ है ।”
तब शरद यादव ने अपनी दबंगई दिखाते हुए चंद्रशेखर जी को टोका और कहा “अध्यक्ष जी आप बीच में मत बोलिये ।”
बस फिर क्या था..
चंद्रशेखर जी ने भरी संसद में अपना जो रौद्र रूप दिखाया तो इन तथाकथित युवा नेताओं के पसीने छूटने लगे ।
चंद्रशेखर जी ने उस समय कड़कती आवाज में कहा था :
“मुझसे ऐसे भाषा में बात करते हो । संसद भवन के बाहर ऐसे भाषा बोलो शरद । मैं तुम दोनों को यकीन दिलाता हूँ , तुम्हारे आने वाली पीढ़ियों में भी कोई गुंडा पैदा नहीं हो पायेगा .” यह सुनते ही दोनों को सांप सूंघ गया और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और सदन से बाहर निकलते ही उनदोनो ने चंद्रशेखर जी से अपनी गलती पर दुःख जाहिर किया और आगे से ऐसी गलती न दोहराने की बात कही ।
एक अक्खड़ ,मनमौजी ,गंभीर,फौलादी जिगर वाला नेता जिसने राजनीती अपने शर्तो पे की, किसी की मेहरबानी को कबूल नहीं किया । देश का प्रधान मंत्री बना और कांग्रेस के दुष्चरित्र को भांप कर उस कुर्सी को ठोकर मार दी ।
ऐसी शख्सियत तो किसी स्वभिमानी राजा का ही सकता है न.. जिसके लिए देश के हित आगे व्यक्तिगत हितों का कोई मोल नही । पर अफसोस कि ऐसा व्यक्तित्व जिसके लिए शब्दकोश में शब्द कम पड़ जाएं उससे प्रेरणा लेने के बजाए हमने उसे इतिहास के पन्नो में समेट कर रख दिया ।
नमन बागी बलिया के बाबुसाहेब..💐
आप हम सभी भारतीय युवा के लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेंगे …🙏
यह आलेख युवा साथी राणा दीपू सिंह के द्वारा लिखा गया है।।