गीत – ” सपने सजाने वाले बार-बार देखे “

खुद को चुराने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
किये जो भरोसे , तार-तार कीन्हे ।
मिल के निराले , दर्द -प्यार दीन्हे ।।
खुशियाँ दिखाने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
शाम -सवेरे , रोज याद करना ।
लगते सहारे , मगर प्रीत सहना ।।
मन को हराने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
लम्हे बहांने , गहने पुराने ।
धर्म दीवाने , कर्ज -फर्ज जानें ।।
मद में लुभाने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
होना जुदा अब , कर्म सीख लेते ।
जितना दिया था , ब्याज भीख देते ।।
हम को सताने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
विधि का विधाना , स्वयं धूल खायें ।
अहम आशियाँ को , नहीं भूल पायें ।।
सच को मिटाने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
जहाँ हम खड़े हैं , रीतियाँ कहानी ।
वहीं फूल सी हैं , प्रीतियाँ सुहानी ।।
रब को छिपाने वाले , बार-बार देखे ।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
गीत सहेजें , साथ हो लीने ।
” अनुज ” तराने , राग रट लीने ।।
गजलें सुनाने वाले , बार-बार देखे ।।
सपने सजाने वाले , बार-बार देखे ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान “अनुज “
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।

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