थम गया है बादलों का शोर
हवा भी अब सुकून की साँसें लेने लगी ,
चेहरा आसमान का है खिला-खिला अब ,
ओढ़ चुनरिया धानी, धरती इतराने लगी ।
मौसम ने बदला है फिर से करवट
तपिश सूरज की है अब जाने लगी ,
ओढ़ कर कोहरे की चादर
रात है अब सोने लगी ।
टप-टप करतीं ओस की बूंदें
पत्तियों पर डेरा डालने लगीं ,
पाकर स्नेहिल स्पर्श किरणों का
मोतियों में हैं ढलने लगीं ।
धरती , आसमान , चाँद, सितारे
सब कुछ अब तक हैं वहीं,
एक सूरज ने बढ़ा ली क्या दूरी
दशा धरती की है बदलने लगी ।
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मौलिक एवं स्वरचित
सरस्वती मल्लिक
मधुबनी , बिहार