नारी तू नहीं मात्र शृंगार निमित्त
लावण्यमय नाजुक लता सी कोमल ,
सरस प्रेममयी भाव प्रधान चित्त
शक्ति रूपेण तू गंगाजल सी धवल ।
कुप्रथाओं कुरीतियों पर प्रहार कर
तोड़ वर्जनाओं को भर तू उड़ान ,
खोल पंख आकाश को मुट्ठी मे कर
लक्ष्यप्राप्ति में रात्रि को कर विहान ।
दृढ़ प्रतिज्ञ भाव से तू कर शृंगार
तेजमयी कृति भूली कहाँ स्वमान,
प्रसाधित हो नेत्रों में भर अंगार
अखंडित रहे सदा तेरा स्वाभिमान ।।
सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश