“धड़कन बन जाते हो…”

मनोज शाह 'मानस'

तुम्हें…!
कुछ सोचूं तो…,
सपना बन जाते हो ।

तुम्हें…!
कुछ पूछूं तो…,
सवाल बन जाते हो ।।

तुम्हें…!
कुछ लिखूं तो…,
शब्द बन जाते हो ।

तुम्हारे…!
बारे में…,
मैं क्या कहूं ?

तुम…!
मेरी हर सवाल की
जवाब बन जाते हो ।।

कुछ…,
इस तरह ही मेरी
जिंदगी में शामिल हुए ।

तुम्हें…!
भूल जाऊं तो…,
याद बन जाते हो ।।

अगर…!
मैं शब्द हूं तो…,
तुम किताब बन जाते हो ।

जिंदगी…!
क्यों मेरी अधूरी…,
तुम्हारे बिना लगता है ।।

दूर…!
चला जाऊं तो…,
दिल के पास आते हो ।

सच कहूं…!
मैं दिल हूं तो…,
तुम धड़कन बन जाते हो ।।

स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
डी-27, सुदर्शन पार्क,
नई दिल्ली-110015
मो.नं.7982510985
manoj22shah@gmail.com

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