“गर्मी”

“कुण्डलियाँ”


              

गर्मी प्रतिदिन बढ़ रही, इस पर करें विचार।
वृक्षारोपण सब करें, प्रकृति का हो श्रृंगार।
प्रकृति का हो श्रृंगार, और शुद्ध बहे बयार।
दुषित न वातावरण हो,सुखमय हो संसार।।
“राधे” कहे मन अंदर बाहर,न रहे ए गर्मी।
मानव के अंतर्मन में,न हो जाए ए गर्मी ।।

गर्मी नित बढ़ रही,बढ़ता बिजली का भार।
दोहन हो रही धरा का, इस पर करें विचार।।
इस पर करें विचार और प्रकृति से करें प्यार।
कोई दूजा संसाधन का, सब करें विचार।।
“राधे” कहे मानवता का,प्रेम बरसे न ए गर्मी।
प्रयोग तभी बिजली करें,दूर भगाएं ए गर्मी।।
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राम रतन श्रीवास “राधे राधे”
बिलासपुर छत्तीसगढ़

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