॥जय श्री गुरूवे नमः॥
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जो राम में मन रमा नहीं ,
जीवन सफल हुआ नहीं ,
तृष्णा में ही फँसा रहा ,
मानव मन से मरा नहीं ॥
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मन उलटने को जीवन मिला ,
मन में खुद ही उलट गया,
मन तक ही जो सिमटा रहा,
संसार से फिर वो तरा नहीं ॥
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मन मारने की ज़रूरत नहीं,
मन राम की ओर मोड़े रहो,
राम शक्ति से मन हारे नहीं,
मन हारने वाला खरा नहीं॥
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हाथों को काम मन राम को दे दो,
साँसों को जाप जिह्वा को नाम लेने दो,
सौंप दे “रश्मि” सब अहं इरादे ,
भव जाल से फिर तू घिरा नहीं॥
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रश्मि सिन्हा “शैलसुता”
ऑटवा, कनाडा
स्वरचित , मौलिक अप्रकाशित
२८ सितम्बर २०२२
१०:४५ मिनट रात कनाडा समय