निश्छल स्त्री और प्रेम

पुरुषों को प्रेम के लिए
हमेशा जतन करने पड़े
उसने युद्ध तो
बहुत सारे जीते
पर स्त्री का मन
कभी जीत नहीं पाया

श्रेष्ठता प्राप्त की है
विद्वाता में हमने
पर स्त्री मन को
पढ़ने मे हम
आज भी असमर्थ है

स्त्री को प्रेम स
स्वभावतः मिला
हर मांसल युक्त शरीर पर
मरने की हमारी आदत
पुरानी रही

स्त्री छली गई
छलावा पुरुषों ने किया
हमनें हमेशा देह चुनी
संवेदनाये नहीं
निश्छल स्त्री
और प्रेम
दोनो
निर्दोष मारे गये

अब भरोसे वाले
शब्द को
स्त्री ने
अपने
शब्दकोश
से ही हटा दिया

प्रतिमा पंकज तोदी
दिल्ली _ 32

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