हलफनामा

अजय कुमार झा

खामोशी का पैरहन ओढ़,
लेटा हूँ दर्द के बिस्तर पर,
दरकार है निंद के आगोश की,
इंतज़ार है लहरों के उठने की,
समंदर से उठे न उठे,
गर ठान ले उठने की,
पहाड़ और रेगिस्तान में,
उठ सकती है..,
सुनामी बन भीषण तूफान,
उठा सकती है.

अजय कुमार झा
मुरादपुर, सहरसा, बिहार.

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