पलके बंद करके ख्वाबों में जी रही हूं
उन लम्हों को जो कभी जी ना सकी।
क्या हुआ? यह ख्वाब है अगर
कल हकीकत भी होंगे,
धीरे-धीरे उन ख्वाबों को
अपना बना रही हूं
जो कभी मेरे हो ना सके।
दिल में एक तूफान सी उठती है
चाहता है तोड़ दूं हर बंधन को
और कर लूं अपनी मन की,
परंतु कुछ मजबूरियां है
और कई रिश्तो की दहलीज भी
जो रोकती है मुझे,
जिसे कभी मैं लांघ ना सकी।
सपने में उन लम्हों को जी रही हूं
जो आज तक अधूरे है,
कल पूरे भी होंगे, समय परिवर्तित भी होगा..
मेरे सपनों को भी पंख लगेंगे
जिसे कभी शब्दों में बयां मैं कर ना सकी।
पलके बंद करके उन ख्वाबों को जी रही हूं…
जिसे कभी मैं जी ना सकी !!
स्वरचित – पूजा भूषण झा, वैशाली ,बिहार।