नवगछिया: परवत्ता गांव में इलाज कराने गए एक सात वर्षीय बच्चे की मौत ने ग्रामीणों को झकझोर दिया है। बुधवार की रात एक मामूली खांसी के इलाज के लिए गए विक्की मंडल के बेटे को कथित डॉक्टर अखिलेश मंडल के “विज्ञान प्रयोग” ने हमेशा के लिए चुप करा दिया।
खांसी से मौत तक का सफर
बच्चे की मां ने बताया कि जब बेटे को खांसी हुई, तो वह उसे गांव के “डॉक्टर साहब” अखिलेश मंडल के पास ले गईं। डॉक्टर ने बच्चे को देखकर भाप देने की सलाह दी। भाप देने के बाद बात आई “इंजेक्शन” की। यहीं से शुरू हुई एक मासूम की जिंदगी की उलटी गिनती।
“नस नहीं मिली, तो मौत दे दी”
डॉक्टर साहब ने इंजेक्शन देने की बात कही और बच्चे के हाथ में नस खोजने लगे। मां ने जब देखा कि नस नहीं मिल रही है, तो उन्होंने डॉक्टर को इंजेक्शन लगाने से साफ मना कर दिया। लेकिन डॉक्टर ने उनकी बात को नजरअंदाज करते हुए इंजेक्शन लगा दिया। इसके तुरंत बाद बच्चे की तबीयत बिगड़ने लगी। उसके मुंह से झाग निकलने लगा, और देखते ही देखते उसकी हालत गंभीर हो गई।
अस्पताल पहुंचने से पहले खत्म हो गई उम्मीद
बच्चे को आनन-फानन में मायागंज अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल में डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया।
ग्रामीण चिकित्सक या मौत के सौदागर ?
ग्रामीणों का कहना है कि अखिलेश मंडल खुद को डॉक्टर बताता है, लेकिन उसके पास कोई मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं है। यह पहली बार नहीं है जब उसके इलाज पर सवाल उठे हैं। सवाल यह है कि ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों को आखिर किसने “लाइसेंस टू किल” दे रखा है ?
परिजनों का आक्रोश और प्रशासन की चुप्पी
मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया है कि गलत इंजेक्शन लगाने के कारण बच्चे की मौत हुई। उन्होंने अखिलेश मंडल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। लेकिन, हमेशा की तरह प्रशासन अभी “जांच के आदेश” की रटी-रटाई स्क्रिप्ट पर काम कर रहा है।
इलाज के नाम पर अंधविश्वास
गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों का बढ़ता चलन केवल स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को दर्शाता है। एक मामूली खांसी का इलाज करने वाले डॉक्टर ने ऐसा “इलाज” किया कि बच्चा हमेशा के लिए सो गया। आखिर, कब तक मासूम जिंदगियां इस तरह के इलाज की बलि चढ़ती रहेंगी?
निष्कर्ष
यह घटना ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को रेखांकित करती है। सरकार और प्रशासन को इस मामले में कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि झोलाछाप डॉक्टरों के आतंक को खत्म किया जा सके। वरना, हर गांव में “डॉक्टर साहब” का इलाज यूं ही जानलेवा बनता रहेगा।