उत्साहित माहौल में विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जा रहा प्राकृतिक पर्व करमा धरमा
श्रवण आकाश, खगड़िया
संस्कृति और परंपरा का लोक पर्व कर्मा – धर्मा बिहार के विभिन्न जिलों के साथ ही साथ खगड़िया जिला अंतर्गत समस्त प्रखंडों में काफी आस्था विश्वास एवं उत्साहित माहौल में मनाया जा रहा है। जहां बहनें अपनी भाई के सुख समृद्धि की कामना व दीर्घायु को लेकर सोमवार को उपवास रखते हुए पूजा अर्चना कर रही है। पर्व की शुरुआत में श्रद्धालु व्रतियों ने नहाय खाय व सात्विक अरवा भोजन ग्रहण किए और बहनें अपनी भाई की सलामती के लिए पूरी विधि विधान से व्रत एवं पूजन की। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति नरक यात्रा से बचता है, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत में बहने अपने भाइयों के सुख समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती है।
इस पर्व पर पंडित प्रिय रंजन मिश्र, हरदेव मिश्रा, कृष्णकांत झा का भी कहना है कि भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए बहनें अपने घर के बाहर तालाब बनाती है और उसे अच्छी तरह फल फूल से प्राकृतिक सौंदर्य के लिए सजाती है। इसके उपरांत संध्या में नए-नए परिधानों में सज धजकर देवाधिदेव महादेव, माता पार्वती और प्रथम पूजनीय सिद्धि विनायक की पूजा अर्चना करती है। इसके बाद तालाब के चारों ओर घूम-घूम कर कर्मा – धर्मा का गीत गाती है। इस दिन युवतियों एवं महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती है।
इस पर्व पर बहनें नई वस्त्र पहनती है और कुश के अंदर ग्यारह फलों को लपेट लंबा सा झूर तैयार करती है। इसके बाद बहनें उस झूर को पूजा करती है और जल अर्पित करती है। इस दौरान उनके भाई के साथ रहते हैं, फिर पूरी रात गीत नृत्य आदि चलती रहती है। बहनें इस गीतों के माध्यम से भाई की लंबी उम्र की कामना की। कर्म पूजा विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न विधि से किया जाता है। लेकिन संपूर्ण मगध में ग्रामीण महिलाएं शाम को स्नान करने के बाद थाली में धूप बत्ती, चावल, सिंदूर आदि लेकर एक जगह जमा होती है। जहां झूर के पूजन का अनुष्ठान होता है। पूजा से पहले गोबर माटी से जमीन को लिप पोत कर साफ किया जाता है। वही लकड़ी के पीढ़े पर मिट्टी की ओखली बनाई जाती है। इसके पश्चात झूर के पौधे को स्थापित कर कर्मा की बेल से उसे बांध दिया जाता है, यानी झूर के पौधे में चारों ओर से करमी के पौधे को लपेटा जाता है। इसके बाद आस्था एवं विश्वास सह पुरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और कथा भी सुनाई जाती है।
इलाके में कर्मा धर्मा पूजा के दौरान बहनें मिट्टी की पांच मूर्तियां बनाकर पूजा करती है। इन मूर्तियों में गणेश, लक्ष्मी, करमा, धरमा, और माली की मूर्ति होती है। मिट्टी से ही गंगा जमुना नाम से नदी भी बनाई जाती है। एक में पानी और दूसरे में दूध दोनों को मिलने के लिए मिट्टी को दो भागों में बांटा जाता है, दोनों को मिलने के लिए उसमें पतला से एक छेद किया जाता है। झूर को खड़ा करने के लिए मिट्टी की ओखली भी बनाई जाती है।
इस पर्व में घर के आंगन में जहां साफ सफाई की जाती है। वहां विधिपूर्वक कर्म डाली को गाड़ा जाता है। उसके बाद उस स्थान को गोबर से लीपकर शुद्ध किया जाता है। बहनें सजी हुई टोकरी या थाली लेकर पूजा करने हेतु आंगन के चारों तरफ कर्मा राजा का पूजा करने बैठ जाती है। इस पावन पर्व के मौके पर वृत्तियों को धर्मा-कर्मा की कथा भी सुनाई जाती है । इस लोक पर्व में कुंवारी कन्याएं महिलाएं और बच्चे भी काफी उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं। इस त्यौहार को प्रकृति पर्व भी कहा जाता है। लोग इस पर्व के माध्यम से फसल की अच्छी पैदावार की भी कामना करते हैं। इस त्यौहार में भाई भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और बहनें की सुरक्षा के प्रति अपना समर्पण भी प्रदर्शित करते हैं । कई जगहों पर पूजा स्थल पर बने तालाब को भाई द्वारा बहन का हाथ पकड़ कर उसे पार करने की परंपरा है।
इस पर्व पर पंडित प्रिय रंजन मिश्र, हरदेव मिश्रा, कृष्णकांत झा आदि ने कहा कि कर्मा धर्मा एकादशी के दिन कुश और राढ़ी घास से भगवान नारायण की प्रतिमा बनाकर रोली चंदन, पंचामृत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप व फल नावेद आदि से पूजा की जाती है। इसके अलावा गौरी गणेश व भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा होती है। भाई अपनी बहनें की रक्षा का संकल्प लेता है और अगले दिन ही पूजित सामग्री को विसर्जित कर व्रत कर पारण कर किया जाता है। इस पारंपरिक लोक पर्व कर्म धर्म को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह देखी देखी गई। इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ और पारंपरिक तरीके से मनाने को लेकर तैयारियां जोर-जोर से चल रही है। संध्या में व्रती यह त्योहार विधि विधान के साथ काफी उत्साह से मनाती है। अंततः देर रात तक नृत्य संगीत का भी आयोजन किया जाता है।