जिंदगी की परीक्षा

डॉ.इन्दु कुमारी

 

थक कर ना यूं बैठ, मंजिल पास है।
चल चला चल चल, मुसाफिर जाना है।

ये राहे जिंदगी की, मुश्किल होगी ही।
सारे दुर्गमों विघ्नों को, टपकर जाना है।

खरगोश की काबिलियत, है कम नहीं।
पर देखो आलस ने, उसको मारा है।

कछुआ धीरे-धीरे कदम बढ़ाता है।
पर मंजिल को पाकर ही, दम लेता है।।

त्याग दें आलस को, मंजिल पास है। l
मंजिल के कांटो को टपकर जाना है।

यह जिंदगी हीं परीक्षा केंद्र है।
चलते चलते इम्तिहान दे जाना है।

पास फेल का मूल्यांकन खुद करते हैं।
जैसी फसलें बोते वैसा पाते हैं।

खुद जिम्मेदार अपने नंबरों का।
खुद की मेहनत का फल खुद को देते हैं।

जिंदगी में जो जोश को, भर जाने दे।
राहों में बैठकर नहीं, सुस्ताना है।

थक कर ना बैठ, मंजिल पास है।
चल चला चल चल, मुसाफिर जाना है।

डॉ.इंदु कुमारी
मधेपुरा बिहार

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