दूर कहीं…

यू.एस.बरी


दूर कहीं …र्पवतों के क्षितिज पर
ठिठका है चाँद
चाँदनी के लिए,
घोर अंधकार मेंं;
छिटक रही चाँदनी नव कोंपलों पर
शनैःशनैः।
पथ की पगडंडियों पर
अंकित हैं,
पथिक के पदों के निशान
डूंढ़ रही है चाँदनी
चाँद के पद निशान
कहीं अंकित मिलें,
प्रीतम के पांव चिन्ह
तारे विस्मित देख मुस्कुरा
रहे हैं ,शनैः शनैः।
जीव जंतर
मधुर गुंजनगान
अलाप रहें
शनैःशनैः।
एक पैर पर
उकढू़ं वैठा उल्लू
देख रहा,चाँद को
देखते चकोर को
एक टक।
रात र्पवतों के क्षितिज
से उतर दरख्तों के क्षितिज
पर अलसायी-सी
भोर के सौर मेंं
पैंरों मेंं अरूणोदय का
महावर लगाये
चली जा रही है,
उस पार…
शनैशनैः।
यू.एस.बरी✍️
लश्कर,ग्वालियर,म.प्र.

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