हो शाम मदीने की भारत मे सुबूह करके
इस माटी मे सर अपना सजदो मे नुगू करके
मासूम मोहब्बत है ये इशक की हसरत है
मै हज भी अगर जाऊ गंगा से वुजुअ करके
राहत के समन्दर है चाहत की फुहारे है
जज्बात के आगन मे मदहोश नजारे है
तयमूम करूं इनका अल्लाह से खुशूअ करके
मै हज भी अगर जाऊ गंगा से वुजूअ करके
खुशबू से मोअत्तर है ये मुल्क फजाओ का
मरऊब अमन से हैइन ताजा हवाओ का
दिल झूम रहा मेरा जलसा ओ रुकू करके
मै हज भी अगर जाऊ गंगा से वुजूअ करके
आमिन है सलामत है हर गीत है पाकीजा
हर रूप मे मा इसके हर नार मे दोशीजा
दिल माग रहा रब से दोआ ये खुजूअ करके
मै हज भी अगर जाऊ गंगा से वुजूअ करके
शहाब उद्दीन’कन्नौजी