संध्या सुंदरी

डॉ.इन्दु कुमारी

चिड़िया लौट रही नीर
छोड़ के नदियों के तीर
रात की रानी आ रही
चल पड़े बेचारे दिन
संध्या रानी वंदन करती
लेकर सरिता के नीर
निशा रानी पधार रही है
वसुंधरा के समीप
मेहनत करने वालों के पीड़
हरने आ रही गा लोरी गीत
कलरव करते गंतव्य तक
पहुंच करने विश्राम
रजनी पंख पसार रही
गा रही मीठी गान
संध्या सुंदरी अस्ताचल
हो रंग-बिरंगे वेश
लाल गुलाबी नीले पीले
काले काले केश
मुक होकर स्वागत
करते राज हिमालय
नदिया रानी साज बाज से
आ गई आ ल य
कल कल छल छल की
ध्वनि तोड़ रही रात की नीरवता
धरती चुप है आसमान चुप है
चुप्पी उनकी श्यामल ता
थक हार कर मजदूर पथिको
रजनी की आगोश में चलें
आगोश में रजनी के चले
गहरी नींद में मन को
सुकून पहुंचाते अगर
ना आती रात की रानी
अपने साथ जब आज के साथी
इतनी सुखद ना होती संझाती।
डॉ. इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार

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