माधुरी मुँदरी ( छत्तीसगढ़ी गजल ) —
02/10/2022
❤️ मनमोहना🌷
करो का जतन मनमोहना मन में घुना दिन रात हे ।
कतको समझ के गोठ हे मोला नहीं कुछु भात हे ।।
बिसवास तैंहर तोड़ दे दुनिया सबो ये उजर गये
मुड़पेलहा बनगे हँवो अभी सुख के नहीं अब बात हे ।
चिंता फिकर सब जोड़ के परसे अइसन सिंगार के
दिल छेद दिस करनी करम अँचरा मा दुख सकलात हे ।
मन के मयूरा रोत हे सुन्ना सबो घर द्वार हे
दुनिया सबो नटवर कथे महिमा तुँहर जन गात हे ।
बड़ घाम भूख पियास हे रुखवा छिंदागे छाँव के
अनदेखना दुनिया हे इँहा ये सोच मुड़ चकरात हे ।
मछरी बरोबर तन जरे कउआं कुकुर सब ताक में
अब मैं कतेक सहराँव गा जब तोर घर ममहात हे ।
मन्तर सबो तैं सीख के का बाण तुक के मार दे
मुदिता नहा के आज तक हीरा असन उजरात हे ।
—- माधुरी डड़सेना ” मुदिता “