एक उम्र से जाग रहे है

नीक राजपूत

चिठिया लिखकर तुम्हें हम परेशान कर रहे है।
एक यही गुनाह बचा जो हम बार बार कर रहे है।

मौसम की तरह मेरे तेवर भी बदल रहे है तेरे
ख़यालो में हर एक दिन हमें ईद जैसे लग रहे है।

धीरे- धीरे अपना दर्द कही हम खो रहे है शहर में
लोग हमारी पहचान तेरे नाम लेकर बदल रहे है।

आज के दिन कुछ नया खास कर रहे है कलाई
पर तेरा उर्दू नाम हम हिंदी में गुदवा रहे है।

कभी सड़क पर तो कभी रेल पटरी पर चल रहे
है तेरे दिल तक पहुँचने के लिए ये सब कर रहे है।

तेरी तलाश में हम कहा कहा भटक रहे है कुछ
पल जी रहे है कुछ वक़्त के लिए मर रहे है।

तेरी तस्वीरों के सहारे हम अपना पता ढूंढ रहे है
एक उम्र से जाग रहे है आँखे बंध किये सो रहे है।

    नीक राजपूत 

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