सम्मानित मंच नमन।
विषय- हिजाब क्रान्ति।
विधा- छंद बद्ध कविता।
दिनांक-02/10/2022.
नहीं रहेंगी अब की पिजरों में,
समय पुराना बीत गया।
हम विचरेंगी सुन अंबर में,
तरकस तेरा रीत गया।
बहुत सताया तू ने हमको,
क्यों लज्जा तुम्हें न आई।
हमको पिजरों में रखने की,
क्यों कसमें तुमने खाईँ।
अब घूमेंगी नील गगन में,
समय पुराना बीत गया…….
श्वेतांबर में तेरे देखा,
पले नाग अब काले हैं।
लाख लगाओ बंदिश हम पर,
कदम न रुकने वाले हैं।
मार-काट तुम जितना करलो,
तरकस तेरा रीत गया…
नहीं खिजाबों में बंदी है,
नहीं सुहानी लाली में।
क्या रक्खा है इस बुर्के में,
कोट पुरानी काली में।
हम मोर्चे से तुम्हें बताएँ,
समय पुराना बीत गया….
खुशहाली से रहना चाहो,
हाथ मिलाकर साथ चलो।
दकियानूसी भाव छोड़ दो,
कदम मिलाकर यार चलो।
अब तुम जीत नहीं पाओगे,
धैर्य हमारा टूट गया।
सादर समीक्षार्थ।
हरिहर ‘सुमन’