मंथरा

सुधीर श्रीवास्तव


आज ही नहीं आदि से
हम भले ही मंथरा को
दोषी ठहराते, पापी मानते हैं
पर जरा सोचिये कि यदि मंथरा ने
ये पाप न किया होता
तो कितने लोग होते भला
जो राम को जान पाते।
कड़ुआ है पर सच यही है
शायद ही राजा राम का नाम
हम आप तो दूर
हमारे पुरखे भी जान पाते।
सच से मुँह न मोड़िए
जिगरा है तो स्वीकार कीजिये
राम के पुरखों में कितनों को
हम आप जानते हैं,
कितनों के नाम जपते हैं,
सच तो यह है कि दशरथ को भी लोग
राम के बहाने याद करते हैं,
जबकि दशरथ के पिता
राम के बाबा का नाम भी भला
कितने लोग जानते हैं?
भला हो मंथरा का
जिसनें कैकेई को भरमाया
कैकेई की आड़ में
राम को वनवास कराया।
फिर विचार कीजिये
भरत को राजा बनाने के लिए
कैकेई को क्यों नहीं विवश किया,
भरत राम को वापस लाने वन को गये
तब मंथरा ने कैकेई से
हठ क्यों नहीं किया
क्यों नहीं समझाया,
क्या उसे अपने हठ का
अधूरा परिणाम भाया?
सच मानिए तो दोषी मंथरा है
फिर ये बात राम के समझ में न आया?
समझ में आया तो
अयोध्या वापसी पर भी
मंथरा को गले क्यों लगाया?
सम्मान क्यों दिया?
कहने को हम कुछ भी कहते फिरते हैं
गहराई में भला कब झांकते हैं?
सच तो यह है कि
कैकेई सिर्फ़ बहाना बनी,
राम को राजा राम नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने का
मंथरा ही थी जो सारा ताना बुनी।
उस कुबड़ी ने कितना विचार किया होगा
राम के साथ नाम जुड़ने का
कितना जतन किया होगा।
आज हम राम और रामायण की
बातें बहुत करते हैं,
पर भला मंथरा के बिना
राम और रामायण का
गान पूर्ण कब करते हैं?
मानिए न मानिए आपकी मर्जी है
पर मंथरा के बिना
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम
सिर्फ़ खुदगर्जी है,
क्योंकि राम तो राजा राम
बनकर रह जाते,
मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने की
सूत्रधार तो मंथरा ही है।
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
© मौलिक, स्वरचित

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