आसमां रो रहा है
आंसू समंदर बना रहा है
सूर्य ताप से झुलस पानी
वाष्पित हो बादल बना है
घनघोर घटा छलक छलक
अवनि अम्बर के मिलन से
फसलों को लहलहा रहा है
हसुआ – हथौड़े की होड़ में
बैलों के नथ फेनिल हो रहे
और हल निलाम हो रहा है.
धौंकनी की फुफकार से
अंगेठी की आग धधक रही है
लुहार की चोट से गर्म लोहा
अपनी शक्ल बदल रहा है.
अजय कुमार झा
मुरादपुर, सहरसा, बिहार.