तुझे याद ऱखकर मैं सब भूल जाता हूँ।
अपने ही अंदर कही गुम हो जता हूँ।
जब तुम मेरी कविताएँ पढ़ती हो तो
मैं तुम्हारी आँखों में बिखर जाता हूँ।
मानों चाँद को चूम सकता हूँ जब में
लिखता हूँ तुम्हें तब तुम हो जाता हूँ।
इससे बड़ी खुसी मेरेलिये और क्या होगी
मैं तो आज तेरे नाम से पहचाने जाता हूँ।
जहाँ पहुँचना मुश्किल है मैं एक ऐसी
काल्पनिक दुनियां में चला जाता हूँ।
तुम्हें अपनी आदत बनाना चाहता हूँ।
आजकल इसी फ़न से जाना जाता हूँ।
नीक राजपूत